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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
है कि किसी द्रव्य का मूल गुण अन्य द्रव्य में नहीं है । मूल गुण को भिन्नता के कारण ही ये द्रव्य भिन्न २ कहलाते हैं । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन तीनों द्रव्यों में तीन गुण और चार पर्याय एक समान हैं । इस प्रकार इन द्रव्यों का
आपस में साधर्म्य और वैधर्म्य है। ___ छह द्रव्यों के साधर्म्य, वैधर्म्य जानने के लिए नीचे की गाथा उपयुक्त है-- परिणामि जीव मुत्ता, सपएसा एगखित्त किरिया य। णिचं कारण कत्ता, सव्वगय इयर अपवेसे ।
अर्थ-निश्चय नय की अपेक्षा छहों द्रव्य परिणामी अर्थात् बदलने वाले हैं । व्यवहार नय से जीव और पुद्गल ही परिणामी हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल अपरिणामी हैं। छह द्रव्यों में एक जीव है, पांच अजीव हैं । एक पुद्गल मूर्त अर्थात् रूपी है बाकी पांचों अरूपी हैं। एक काल द्रव्य अप्रदेशी है । बाकी के सब सप्रदेशी (प्रदेश वाले) हैं। धर्म, अधर्म असंख्यात प्रदेश वाले हैं।
आकाश और पुद्गल अनन्त प्रदेशी हैं। एक जीव की अपेक्षाजीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी है और सब जीवों की अपेक्षा अनन्त प्रदेशी है। धर्म, अधर्म और आकाश ये तीन द्रव्य एक एक हैं, बाकी तीन अनेक हैं। आकाश क्षेत्र रूप है, बाकी के पांच क्षेत्राश्रित हैं।
निश्चय नय से सभी द्रव्य सक्रिय हैं । व्यवहार नय की अपेक्षा जीव और पुद्गल ही सक्रिय हैं, बाकी