Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 10
________________ पृष्ठ १३८ १४० १४२ (८) क्रम विषय प्रकरण पांचवा १. धर्म का मूल क्या है ? २ मनाक (अल्प) चारित्र धर्म है ? १३५ ३ धर्म की व्याख्या क्या-नया है ? १३७ ४. चारित्र की व्याख्या क्या-क्या है ? ५ मोक्ष ६ पुण्य अर्थात शुभभाव ७ सोह और अनुभव १४५ ८ आत्मा का अनुभव किस गुणस्थान मे होता है ? ६. शुद्ध आत्मा मे ही प्रवृत्ति करना योग्य है १४७ १० राग के आलम्बन के विना वीतराग का मार्ग है ११ आत्महित के लिए प्रयोजन भूत का का क्या-क्या हैं १४६ १२. कभी सम्यग्दर्शनादि को वध का कारण और कही शुभभावो को-मोक्ष का कारण ऐसा क्यो ? १५० १३ व्यवहार मोक्षमार्ग कैसे प्राप्त किया जावे ? १४ निश्चय-व्यवहार का साध्य-साधकपना किस प्रकार है १५१ १५ द्रव्यलिगी को मोक्षमार्ग क्यो नहीं है ? . १६ द्रालगी को निश्चय रन्नत्रय प्रकट क्यो नही होता? १५२ १७ व्यवहार-निश्चय का सार १४६ १४८ * प्रकरण छठा निश्चय-व्यवहारनयाभासावलम्बी का स्वरूप निश्चय-व्यवहार को समझने की क्या आवश्यकता है १ निश्चय व्यवहार का स्पष्टीकरण स्थूल मिथ्यात्व, सूक्ष्म मिथ्यात्व क्या है ? निश्चय व्यवहार का लक्षण क्या है ? * * *


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