Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06 Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal View full book textPage 9
________________ ( ७ ) क्रम विषय ४० सम्यक्त्व की महिमा से कर्म नही बधता है ४१. श्रद्धान का बल क्या है १ ४२. तिर्यचो मे सम्यक्त्व समान है ४३ सम्यग्दर्शन अर्थ है ४४ सम्यग्दर्शन पूजा है ४५ सम्यग्दृष्टि नमस्कार के योग्य है ४६ सम्यग्दृष्टि कसा जानता है प्रकरण चौथा १ निश्चय व्यवहार सम्यग्दर्शन का स्पष्टीकरण २ साधक अन्तरात्मा को एक साथ साधक-बाधक है ३ भूमिकानुसार निश्चय व्यवहार की व्याख्या क्या है ४. ज्ञानी के व्यवहार मे विपरीतपता नही होता है ५ व्यवहार सम्यग्दर्शन किसको होता है ६ व्यवहार सम्यक्त्व क्या है ? ७ व्यवहार मोक्षमागं क्या है ? ८ विपरीत अभिनिवेश रहित ही सम्यक्त्व है ६ प्रवचनसार गाथा १५७ मे निश्चय व्यवहार क्या है १० सम्यक्त्व चौथे से १४वे तक बतलाया है ११ सम्यग्दृष्टि का किसी समय अशुभभाव भी होता है उस समय व्यवहार सम्यक्त्व का क्या हुआ ? १२ सातवें गुणस्थान के बाद व्यवहारसम्यक्त्व क्यो नही होता ? १३ अन्तरात्मा बहिरात्मा परमात्मा का स्वरूप १४ ४-५-६ गुणस्थानो मे निश्चय के साथ व्यवहार होता है १५ शुद्धनय के जानने से ही सम्यक्त्व होता है १६ सम्यग्दर्शन प्राप्ति के विना व्यवहार होता ही नही Founder : Astrology & Athr पृष्ठ १२१ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२३ १२३ १२४ १२५ १२५ १२६ १२६ १२६ १२७ १२७ १२५ १२८ १२६ १२६ १३० १३० १३०Page Navigation
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