Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 11
________________ विषय क्रम पृष्ठ यथार्थ का नाम निश्चय, उपचार का नाम व्यवहार को किस-किस प्रकार जानना चाहिए १५६ उभयाभासी किसे कहते है निश्चयाभासी किसे कहते है १५६ व्यवहाराभासी किसे कहते है १६१ २. वीतराग भाव ही मोक्षमार्ग है १६४ से १६८ तक निमित्ति व सहचारी इन दो का तात्पर्य क्या सम्यग्दर्शन दो प्रकार के हैं निम्चय-व्यवहार के विषय मे चरणा योग क्या बताता है ३ शुद्धि प्रगट करने योग्य उपादेय, अशुद्धि अश हेय है १६८ से १७० __ चौथे-पाँचवें, छठे मे हेय-उपादेयपना ४ उभयभासी को खोटी मान्यता का स्पष्टीकरण १७० से १७९ - शुद्धपने मे कितने अर्थ है। ५ तीसरी भूल का स्पष्टीकरण १७६ से १८६ तक निश्चय का निश्चय-व्यवहार का व्यवहार श्रद्धान क्या है ? प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन नहीं है। ६ १३८ से १६२ तक के प्रश्नोत्तर याद करने योग्य १८६ से १६६ १० जी ने निश्चय-व्यवहार के लिये क्या बताया है ? दूसरे भाचार्यों ने निश्चय-व्यवहार क्या बताया है ? कुन्द कुन्द ने निश्चय-व्यवहार में क्या बताया है ७ सयोग रुप निश्चय-व्यवहार नौ वोलो १९६ से १९६ तक मनुष्य जीव पर निश्चय-व्यवहार क्या है ८ सयोग रुप निश्चय-व्यवहार का विशेष स्पष्टीकरण १६६ से २०६ है कारण-कार्य का सात बोलो से २०६ से २१० तक - muTHoमना -- der: Astrology & Athrishta

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