Book Title: Jain Siddhant Bhaskar Author(s): Hiralal Professor and Others Publisher: Jain Siddhant Bhavan View full book textPage 5
________________ ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ AHILPIRIHIAND ROIMAnaenimammIITTESTRATIMETAIMER HERNA ITTARIETITAL - SSE. HITAHARA MIDA CHATTA CH ANDE H ATTERIALYERIENHANEL THE JAINA ANTIQUARY. जैनपुरातत्व और इतिहास-विषयक त्रैमासिक पत्र भाग४ दिसम्बर, १९३७ । मार्गशीर्ष, वीर नि० २४६४ किरण ३ जैनमन्त्र-शास्त्र (लेखक-श्रीयुत पं० के० भुजवली शास्त्रो) आजकल बहुतेरे व्यक्तियों का विश्वास मन्त्रशास्त्र पर सर्वथा उठता जा रहा है। इसका प्रधान कारण यह है कि अब हमारे भारतवर्ष में इस शास्त्र के मर्मज्ञ बहुत ही कम पाये जाते हैं। इसी का यह नतीजा है कि वर्तमान समय में सर्वत्र सुलभतया मन्त्रशाल के न पथ-प्रदर्शक मिलते हैं और न इसके साधक ही। जब कोई इस शास्त्र के अल्पज्ञ साधक स्वार्थ-प्रे.रेत हो किसी मन्त्र या देवदेवियर्या को सिद्ध करने के लिये प्रयत्न करता है तब मले प्रकार उसके विधि-विधान को नहीं जानने से असफल हो बैठता या उल्टा हानि उठाता है। इन्हीं सब बातों को देखकर साधारण जनता की श्रद्धा इस शास्त्र से ही उठ जाती है। मन्त्रशास्त्र में अविश्वास होने का यही मूल कारण है। मेरे उल्लिखित कथनानुसार आजकल बहुसंख्यक साधक स्वार्थवासना से प्रेरित हो धन, संसान एवं विजय आदि की प्रापि के लिये ही किसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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