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१०८ ७. पुस्तकोद्धार-साहित्यसंशोधन अने प्रकाशन ___ जैनधर्म जेटलो प्राचीन छे तेटली ज तेनी संस्कृति पण प्राचीन छे. मुख्यत्वे धर्मबोध माटे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने प्राचीन तेम ज अर्वाचीन गुजराती भाषामां रचायेला जैनसाहित्यनो विपुल वारसो आपणने मळेलो छे. आपणा पूज्य त्यागी वर्गे पोताना ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, अध्ययन, चिंतन अने मननद्वारा तेना परिपाक रुप अनेक कीमती ग्रंथो रची केवळ जैनसमाजनी ज नहीं परंतु साराये भारतवर्षनी शान वधारी छे. स्थळे स्थळे तेमणे ज्ञानभंडारो ऊभा करेला छे. जेमां धर्म अने साहित्यना कीमती ग्रंथो, हस्तलिखित प्रतो, ताडपत्रो वगेरे वधतेओछे अंशे आजसुधी सचवाई रह्यां छे. तेमांना केटलाये ग्रंथो अपूर्व अने श्रेष्ठ विद्वत्ताथी भरेला होई तेमना ज्ञानवैभव समक्ष आपणां मस्तक नमी पडे छे.
आपणा आ अमूल्य वारसाने साचववानी अगत्य तरफ कॉन्फरन्सनुं ध्यान शरुथी ज गडे हतुं. पहेली कॉन्फरन्से आ • बाबतमां नीचेनो ठराव को हतो :
" जहां जहां अपने पुस्तकों के भंडार होवे वहां वहां के पुस्तकों की टीप पुस्तकों की स्थिति के साथ इस कानफ्रन्स की तर्फ से कराकर छपानी चाहिये"
आ ठरावना समर्थनमां बोलतां भावनगरनिवासी शेठ कुंवरजी आणंदजीए कह्यु हतुं के,
___ "आपणा पूर्वजोनी पारावार दोलतमाथी कालना क्रम बडे प्राप्त थयेल अनेक प्रकारना उपद्रवोर्नु उल्लंघन करीने तेमांथी केटली दोलत
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