Book Title: Jain Shwetambar Conferenceno Itihas
Author(s): Nagkumar Makatai
Publisher: Sohanlal Madansinh Kothari

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Page 200
________________ १९१ बनाची दे छे. दरेक समाजमा एक वर्ग एवो होय छे ज के जे संस्था प्रत्ये असूया राखे अने तेन तोडी पाडवा विरुद्ध प्रचार करे। धर्मने नामे लोकोने उश्केरवा ए घणी सहेली बाबत छे. जैन समाज कई तेमां अपवादरूप नथी. वळी साधुसंस्था ए जैन समाजनी विशिष्ट संस्था छे. तेना आशीर्वाद जे संस्था उपर ऊतरे, ते संस्था फूलेफाले, बीजीनो विकास रूंधाय, साधुओना अंदरोअंदरना पक्षभेदने लीधे श्रावकवर्गमां पण पक्षभेद अने फूट पडे छे अने तेना प्रत्याघातो संस्थाओ उपर पडे छे. कॉन्फरन्सने श्रमणसंघनो सहकार नथी सांपड्यो एम तो न ज कही शकाय पण जोईए ते प्रमाणमां नथी सांपड्यो. वळी समय साथे समाजनी कूच इच्छनारो सुधारक वर्ग अने जूनुं ते सोनुं एम माननारो रूढिचूस्त वर्ग बनेना घर्षणे कॉन्फरन्सना विकासनी गति धीमी पाडी छे.. जैन समाजना युवानवर्गमां अने नवी पेढीमा सामाजिक संस्थाओना कार्यमां रस लेवानी वृत्ति, उत्साह, जोम, अने सेवाभावनी जे प्रमाणमां तमन्ना होवी जोईए तेटला प्रमाणमां नथी. हमेशा संस्थाओमां नवं लोही आववं जोईए अने देशदाझनी जेम समाजसेवानी दाझ युवकोना दिलमां होवी जोईए. शरूआतना वर्षोमां कॉन्फरन्सनो दोर श्रीमंतवर्गना हाथमा हतो. ते धीमे धीमे मध्यम वर्गना हाथमा सरकवा लाग्यो. एक वर्ग आगळ आवे एटले बीजो वर्ग पाछळ पडे ए स्वाभाविक छे. आ प्रक्रियाथी पण कॉन्फरन्सनी चालमां मंदता आवी. मध्यम वर्गे दोर हाथमां लीधो ए एक पडकार जेवू हतुं, परंतु पडकार देनारे जे जुस्सो, आत्मत्याग, आत्मश्रद्धा अने आत्मबळ बताववां जोइए ते ते न बतावी शक्यो, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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