Book Title: Jain Shwetambar Conferenceno Itihas
Author(s): Nagkumar Makatai
Publisher: Sohanlal Madansinh Kothari

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Page 198
________________ १८९ संस्था निष्क्रिय बनी गई छे एवी मान्यता लोकोमां घर घाले छे.. अखिल हिंद अधिवेशनो दर बे वर्षे भराय तोपण खोटुं नथी. परंतु प्रान्तिक अने स्थानिक अधिवेशनो वर्षमां निदान एक वार भरवां जोईए अने तेमणे प्रान्तना अने स्थानिक प्रश्नो चर्चवा जोइए. आवां अधिवेशनो बे दिवसना के एक दिवसनां पण होई शके. महाराष्ट्रना आपणा बंधुओए आ प्रथा ठीक ठीक जाळवी राखी छे. कॉन्फरन्सनां अधिवेशननोनी अनियमितता पण कॉन्फरन्सनी लोकप्रियतामां घटाडो थवामां कारणभूत बनेल छे. प्रान्कि सेक्रटरीओ जो निरुत्साही होय तोपण संस्थानुं काम सारी रीते चालतुं नथी. कोई पण संस्थाना हाथपग प्रान्तिक समितिओ अने स्थानिक समितिओ होय छे. आ हाथपग काम करता बंध पडे तो आखुं शरीर लकवाग्रस्त बनी जाय छे. आपणे त्यां प्रान्तिक समितिओ अने स्थानिक समितिओनी संख्या अति अल्प छे. लगभग दरेक प्रान्तमां एक प्रान्तिक समिति अने मोटा शहर के गाममां स्थानिक समिति होवी जोइए अने तेना कामगीरीना रिपोर्टो नियमित मुख्य कार्यालयमां पहोंचवा जोइए. मुख्य कार्यालय के अग्रिम कार्यकर्ताओं उपर ज आधार राखी हंमेशां बेसी रहेवाय नहि. समाजना दरेक अंगे पोतानो फाळो समाजकल्याणमां आपको जोइए. अधिवेशन योग्य ठरावो करी मार्गदर्शन आपी शके ते ठरावानो अमल करवानुं तंत्र मजबूत अने व्यवस्थित होवु जोइए. आपणा समाजमा ठरावानो अमल करवानी वृत्तिनो अभाव के उदासीनता मालम पडे. छे. कॉन्फरन्स पोतानां अधिवेशनामां वो द्वारा जैनसमाजने सामान्य भलामण के अपील करे छे. " परंतु सौने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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