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पणा नीचे " जैनयुग " दर मासे नियमित प्रकट थाय छे. तेने एक " क्लासिकल " मासिक बनाववा तंत्रीओसहित जैनसमाजना अग्रणी कार्यकर श्री चंदुलाल वर्धमान शाह, जे. पी., श्री सौभाग्यचंद सिंगी, एम.ए. अने श्री कांतिलाल डी. कोरा, एम. ए. एम पांच विद्वानोनुं एक मजबूत व्यवस्थापकमंडळ नीमवामां आव्युं छे. व्यवस्थापकमंडळ तरफथी श्री कांतिलाल डी. कोरा " जैनयुग "ने एक उच्च कोटिनुं सांस्कारिक अने साहित्यिक प्रकाशन बनाववा ततो महेनत करी रह्या छे. " जैनयुगे " तेना नवसंस्करणना बे वर्षना गाळामां अद्भुत प्रगति साधी छे, अने तेना बाह्य रुपरंग अने आंतरसामग्रीमां तेणे गुजराती भाषामा प्रकट थतां अन्य सामायिकोमां मोखरानुं स्थान प्राप्त कयुं छे. तेनी सुघड छपाई, तेनुं कलात्मक आवरण अने तेथी ये अधिकतर तेनी उच्च साहित्य अने विचारसामग्री, सिद्धहस्त लेखकोना हाथे लखाता संशोधन अने पुरातत्त्वने लगता लेखो, नयनमनोहर चित्रप्लेटो वगेरेथी आ मासिक खूब ज नमूनेदार बन्युं छे. जैनसमाजनी सेवा करवानी साथै साथै जैनसंस्कृतिनी सेवामां ते पोतानो गौरवभर्यो फाळो आपी रह्युं छे अने हजी विशेषपणे आपवानी ते उमेद धरावे छे.
जैनयुग "नुं प्रकाशन ए कॉन्फरन्सनी अनेकविधि सिद्धिओ पैकीनी महान सिद्धि छे.
१३. कॉन्फरन्सनं राष्ट्रिय स्वरूप
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कॉन्फरन्सनुं दृष्टिबिन्दु हमेशां राष्ट्रिय रह्युं छे अने तेथी तेणे ते बाबत वखतखत ठरावो करी समाजने योग्य दोरवणी आपी छे. कॉन्फरन्स जेवी संस्थामां समाजे जे विश्वास मूक्यो हतो तेने पात्र
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