Book Title: Jain Shwetambar Conferenceno Itihas
Author(s): Nagkumar Makatai
Publisher: Sohanlal Madansinh Kothari

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Page 182
________________ १७३ . आजे दीक्षाना प्रश्ननी उग्रता चाली गई छे अने कॉन्फरन्से ऐक्यनी खातर पोतानो अति “नम्र" उराव पण फालना अधिवेशनमां परत खेंची लीधो छे त्यारे तटस्थ विचारक माटे आ प्रश्न केवल ऐतिहासिक अगत्यनो ज बनी रहे छे. ११. शुद्धि अने संगठन. "जेनोए पोतानो असली जैन धर्म छोडी अन्य धर्म स्वीकार्यो होय तेमने पुनः जैन धर्ममा लाववा, स्वेच्छापूर्वक जैन धर्म स्वीकारनारने जैन तरीके ग्रहण करवा, तेमने स्वामिवच्छल, नवकारशी जेवा जमणमा तेम ज जैन संस्थाओनो तथा संघना बधा व्यवहार अने साधनोनो लाभ आपवा आ कॉन्फरन्स भलामण करे छे. (चौदमुं मुंबई अधिवेशन ठराव ठो) १२. लग्नक्षेत्र "जैनोमां ओशवाळ, पोरवाड, श्रीमाळी, दशा, वीशा, वगेरे ज्ञातिभेदी होवाथी अने स्थानिक घोळ, वाडा के वर्तुळो होवाथी लमक्षेत्र घणुं संकुचित थयुं छे अने योग्य लग्न करवामां केटलेक ठेकाणे घणी मुश्केली ऊभी थाय छे ए दुःखदायक छे; तो जैनोमां उपरोक्त भेद काढी नाखी अरसपरस जैनोमां गमे त्यां कन्या लेवडदेवड करी शकाय ए इष्ट छे एम आ कॉन्फरन्स माने छे अने एवा भेदो काढी नांखी लग्नक्षेत्र विस्तृत करवानी आग्रहपूर्वक भलामण करे छे". (चौदमुं मुंबई अधिवेशन ठराव. ८मो) १३. केळवणीसंस्थाओगें संगठन अने परस्पर सहकार ___“एवी स्थिति जोवाय छे के जुदी जुदी संस्थाओ स्वतंत्र रीते कार्य करवाथी केटलाकने वधु पडती मदद ने सगवड मळी जाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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