Book Title: Jain Shasan 1995 1996 Book 08 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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He मूल अर्धमागधी के स्वरूप की पुनः रचना : एक प्रयत्न
--डॉ. के. आर. चन्द्र DI-ENRIAGNON-HEDIA-*-AGNAHO-HA
(શાસ્ત્રીય સૂત્ર આદિ અંગે વિચાર વિનિમય દ્વારા માગધી ભાષા અંગેના અનુભવ માટે આ ઉપયેગી લેખ છે.
-५०) . जैन अर्धमागधी आगम साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध के चोथे अध्ययन के प्रथम उद्देशक . में · अहिंसा धर्म के विषय में भगवान महावीर का उपदेश निम्न प्रकार है--
'सब्बे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अजावेतव्वा, न परिवेत्तव्वा, न परितावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा ।'
___ अथात किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए और न ही इसे किसी भी प्रकार से पीडित करना चाहिए ।
'यह शुद्ध, नित्य और शाश्वत धर्म है जो आत्मज्ञों के द्वारा उपदिष्ट है ।' भगवान महावीर की इसी वाणी की अर्धमागधी भाषा के विभिन्न संस्क- .. रणों में निम्न प्रकार से सम्पादित किया गया है
(१) शुजिंग-(१.४.१) एस धम्मे बुद्धे नितिए सासए समच लोगं खेयन्नेहि पवेइए।
.. . - (२) आगमोदय-(१.४.१.१२६) एस धम्मे सुद्धे निइए ,समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पोइए । ... (३) जैन विश्व भारती-(१.४.१.२) एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च . लोयं खेयहि पनेइए ।
- (४) म. जैन विद्यालय-(१.४.१.१३२) एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए समेच्च लोयं खेतण्णेहिं पवेदिते । ___ इन चारों पाठों में जो जो शब्द प्रयुक्त हैं उनमें से निम्न शब्द-रूप एक समान नहीं है