Book Title: Jain Shasan 1995 1996 Book 08 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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... १०४० :
...
श्री
1 शासन (8418)
निइए
.. संस्कृत . शु. . आगमो. जै.वि भा. .. भ.ज.वि. १. नित्य=. नितिए
णिइए णितिए २. समेत्य= समेच्च समिच्च समिच्च
समेच्च ३. लोकम् लोगं . लोयं
लोयं
लोयं ४. क्षेप ः= खेयन्नेहि खेयण्णेहिं खेयण्णेहिं खेतण्णेहिं ५. प्रदितः= पनेइए, पोइए पनेइए - पोदिते __स्पष्ट है कि अपने अपने भाषाकीय सिद्धांतो की मान्यता के अनुसार (न कि प्राकृत भाषा के ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से और न ही समय, क्षेत्र
और उपदेशक की वाणी के स्वरूप को ध्यान में लेकर) और प्राकृत व्याकरणकारों के नियमों के प्रभाव में आकर (जो न यो काल की दृष्टि से ऐतिहासिक है और न अर्धमागधी भाषा की विशेषताओं को स्पष्ट करते है) अलग-अलग पाठो को स्वीकार किया है जिसके कारण शब्दों की वर्तनी में कितना अन्तर आया है और यह अन्तर क्यों आया उसे ही समझना आवश्यक है ।
(१) किसी सम्पादक ने संयुक्त व्यंजन के पहले ए का इ कर दिया है, समिच्च (समेच्च) ।
(२) किसी ने त का, तो किसी ने द का लोप कर दिया है, नितिए, निइए, पनेदिते, पनेइए । ...
(३) किसी ने प्रारम्भिक न का ण कर दिया है, नितिए, णिइए णितिए ।
(४) किसी ने क का लोप किया तो किसी ने क का ग कर दिया, लोयं लोगं । लोयं में उद्वत्त स्वर की य अति है ।
(५) किसी ने ज्ञ का न, तो किसी ने ज्ञ का ण्ण कर दिया है खेयन्न, खेयण्ण ।
(६) किसी ने त्र का त किया तो किसी ने त्र का य किया अथवा ।।
(७) किसी ने द [खेदज्ञ से] का. त किया तो किसी ने इ का य कर दिया है।
(८) इस प्रकार के परिवर्तनों से ऐसा मालूम होता है कि हरेक संपादक की अर्धमागधी भाषा के विषय में अलग-अलग धारणा बनी हुई है।