Book Title: Jain Satyaprakash 1940 05 SrNo 58
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. (C ८] નરરત્ન મેાતીશાહ [30 खरतरगच्छ की पिप्पलकशाखा के श्रीजिनचन्द्रसूरिजी भी विद्यमान थे । वहां एक प्रतिमालेख की नकल जो इस ममय मेरे पास है यहां देता हूँ । “ ॥ श्रीसिद्धचकाय नमः ॥ संवत १८९३ प्रमिते शाके १७५८ प्रवर्तमाने माघ शुक्ल दशम्यां तिथौ बुधवासरे मुंबईबिंदरवास्तव्य ओसवंश वृद्धशाखायां नाहटा गोत्रे सेठ अमीचंद जिद्भार्या रूपबाई तत्पुत्र मोतीचंद जिद्भार्या दीवालीबाई तत्कुक्षिसमुद्भूत पुत्ररत्न श्रीशत्रुजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तश्रीसंघ पतितिलक नवीनजिनभवनबिंबप्रतिष्ठासाधर्मीवात्सल्यादिसप्तक्षेत्रे स्ववित्तसफलीकृत संघमुख्य खेमचन्द्र सपरिवारेण स्वयंसमुद्धारित सप्रकार श्री विमलाच लोपरि मृलोद्धार श्री आदिनाथ प्रथमगणधर श्रीपुण्डरीक बिंबं कारितं खर० श्री भ० जं० यु. श्रीजिनदेवसृरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि विद्यमाने सपरिकरसंयुते भ. जं. यु. श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे || श्रीरस्तुः॥” सेठ मोती साह की कीर्तिकौमुदी बड़ी विस्तृत है । बबईनगर के इतिहास में आपका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है । इसी तरह आपके सुपुत्र खेमचंद सेठ भी बड़े भारी धर्मात्मा, उदारचेता और प्रभावशाली पुरुष थे । आपने अपने पूज्य मातापिता की प्रस्तर मूर्तिये सिद्धिगिरि के मन्दिर में प्रतिष्ठापित करवाई थीं जो आज भी विद्यमान हैं । जयपुर के श्री पूज्यजी श्रीजिनधरणेन्द्रसूरिजी के दफ्तर में सेठ मोतीशाह के पूर्वजों व सम्बन्धियों के विषय में सं. १८७९ में लिखा हुआ जो विश्वनीय प्राचीन वृतान्त है उसकी अविकल नकल यहां देता हूं : मुंबई मध्ये वासी अबारुं रहै छै तिणा री उत्पत्ति लिखी । नाहटा गोत्रे सा धनराज पु० महिराज पु०. केसरीचंद पु० रायचंद पु० सीमल पु० देवचंद पु० मयाचंद पु० साकरचंद पु० अमीचंद वासगांव ईसरु रहिता था । वातरै में घोड़ी आई जद फलौदी में बोगीदास पातै रो हेलो हुवो जद इणां सुं गांव छूटौ । गामधणी रा कामदार हुंता । पछै बखतसिंहजी टीकै बैठा । वखतसिंहजी दोय वरस राज कीनौ । पछै विजयसिंहजी टोकै बैठा । पछे गामधणीयां सुं गाम परौ ऊतरियौ तद गामधणिए गांव सुं नीकलतां इणरो घर लूट लीयो । पछै उपर काल पड़िया तद इणां सुं मारवाड़ छूटी जदरा परदेश गयोड़ा छै ॥ रूपकुंवर बाई रा नानाण वरदिया है नै वास घंटयाली रहै छै नै रूपबाई रा पोहरिया लूंकड़ गांव दहिणोक रहै छै । रूपबाई री मां रा भाईयां रा घर गांव दहिणोक है । रूपांबाई री मांरो नाम हीरा दे छै नै भाई रो नाम सवाईराम है । सो भाई तो चल गयो नै भाई रौं बेटो खेतसी तिको पण सेत हुआ । खेतसी रा बेटा है सो हमार उजैण कानी है । गुणोत्तरो गया है अजीस परदेश ही ज है । या विगतवार । रूपबाई रा बेटा सेठ गुलाबचंद नेमचंद मोतीचंद नाहटा गोत्रे खरतर भट्टारकगच्छ है । या हकीकत पं० तिलकनिधाने उतारी श्रावकोने पूछने उत्पत्ति लिख मेली लो लिखी है। सं. १८७९ फागुण सुदि २ बीकानेर में लिखी है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44