Book Title: Jain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [30] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष 3 अहीं मुक्या नथी । अहीं पण लेखके आना जेवी रमत खेली छे । अथवा सूक्ष्म दृष्टिथी जो विचार करवामां आवे तो आ पाठना चरम भागमांथी आपणे मेळवी शकीए छीए के मध माखण ने मांस मदिरा अभक्ष्य छे अने तेने वापरनारमां साधुता न होय । प्रस्तुत पाठना अन्तिम भागे पाडेल प्रकाश आ पाठना छेल्ला विभागमां एम जणाववामां आव्यं हतुं के, अन्य मुनिओनी साथे ज गोचरी जाय, अने 'एसिय' तथा ' वेसिय आहार लावीने वापरे, आ रीते वर्तनारनुं शुद्ध साधुपशुं छे, आमां जे 'एसिय' अने ' वेसिय' शब्द मुकवामां आवे छे तेमां आचारनी झवेरात भरी छे । एसिय- एषणा समितिथी शुद्ध अर्थात् बेंतालीस दोषरहित आहार | वेसिय- मुनिवेषमात्रथी मेळवेल किन्तु पूर्व परिचयादिकने लईने नहि, अर्थात् -" धाइदूइनिमित्त० " इत्यादि दोषथीरहित आहार । मायानी विचार श्रेणिमां मध माखण ने मांस मदिरानां जे नामो आप्यां हतां तेनो निषेध ' एसिय' शब्द मुकी करेल छे. अने परिचित कुलोनां नाम आप्यां हतां तेनो निषेध ' वेसिय' शब्द मुकी करवामां आवेल छे । 6. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रसंगोपात्त “ एसिय ” “ वेसिय " शब्दनी चर्चा 64 , जो के 'एसिय शब्दना अर्थमां ' वेसिय' शब्दनो अर्थ अन्तर्गत थाय छे, कारण के " धाइदूइ० " इत्यादि दोषोनो ४२ दोषमां समवतार छे. छतां पण ' वेसिय' शब्द जे अलग मुकवामां आवेल छे, तेनुं प्रयोजन ए छे के मायानी विचार श्रेणिमां पूर्व परिचित अने पश्चात् परिचित कुलोनो जे उल्लेख कर्यो हतो तेनो स्पष्ट शब्दमां निषेध करवो । आ 'वेलिय' शब्द एम जणावे छे के वेषमात्रथी आहार लेवो पण पूर्वापरना परिचयादिने आगळ धरीने नहि, अत एव टीकाकार महाराजे वेषमाथी लेवाता आहारना बाधक जे दोषो तेना अभावरूपे ' वेसिय शब्दनो अर्थ जणावेल छे । जुओ “ वेसिय' वैषिकं केवलवेषावासं धात्रीवृतिनिमित्तादिपिण्डदोषरहितम् । " एसिय एटले एषणाशुद्ध, आ एषणा ऋण प्रकारनी छे: - गवेषणा, ग्रहणैषणा अने ग्रासैषणा. ग्रहणप्रसंगमां ' एसिय' शब्द मुकेल होवाथी ग्रहणैषणा लेवानी छे, ग्रहणैषणा एटले ४२ दोष रहित आहार लेवो । आ रीते विचारतां ' एसिय' शब्दनो अर्थ ४२ दोष रहित आहार थाय छे । ' वेसिय' शब्दे केटलाएक दोषना अभावने बतावेल होवाथी अवशिष्ट दोषाभावना संग्रह माटे टीकाकार महाराज एसियनो अर्थ उद्गमादिदोषरहित करे छे, जुओ-' पसिय' एषणीयमुद्रमादिदोषरहितम् । For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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