Book Title: Jain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०-११]] नथु" बेमाने [3१५] आगळ चालतां लेखक जणावे छे केः- “ अजितकुमारजीने श्वेताम्बरमत समीक्षा में जो कुछ लिखा है वह गलत नहि है।" आना जवाबमां जणाववान जे अजितकुमारजीए श्वताम्बर मत समीक्षामां गप्पा मारवामां कचाश राखी नथी, जेनुं सविस्तर प्रदर्श 'समीक्षाभ्रमाविष्करण' मां अमो करावी आव्या छीए. जरूर हशे तो प्रसंगे अनुक्रमणिका पण मळी रहेशे तथा आ लेखकना वचनो पण साबीत करी आपे छे, कई रीते ? जुओ: अजितकुमारजी श्वेताम्बर मत समीक्षामां जणावे छे के मांस दवा तरीके बाह्य उपयोगमां आवी शकतुं ज नथी त्यारे आ प्रस्तुत लेखना लेखक कबुल करे छे के मांस दवा तरीके बाह्य उपयोगमां आवे छे. वगेरे. आगळ चालतां अमारी लेखमाळाने रोकवा डरामणी आपता लेखक जणावे छे के सम्भव है 'जैन सत्य प्रकाश' द्वारा इसी प्रकार अन्य भी अनुचित विधानोंका समर्थन किया जावेगा और तब 'श्वेताम्बर मत समीक्षा' का लिखना स्वतः सत्य-प्रमाणित हो जायगा ।" ___आना जवाबमां जणाववानुं जे सत्यप्रकाशमां उचितविधान- ज समर्थन थाय छे. कदाच तमारो अनुचिततानुं विधान न होवाथी अनुचित लागतुं होय तो तेनुं कोई औषध नथी। उचितता के अनुचितता वचनमात्रथी थई जती नथी, किन्तु प्रमाण अने युक्तिवादथी थाय छे । एक पण प्रमाण या युक्तिने खण्डित कर्या सिवाय वाक्छूरताथी कोई कार्य सरवान नथी । हाल आ लेखने उपसंहारतां अमो एटलुं जणावीए छीए के अमारा श्वेताम्बर दर्शनमां मांमादि निन्द्य पदार्थनो उपयोग नथी, एटलं ज नहि परंतु तेने धिक्कारी काढेल छ। आ अमारो राजमार्ग छे । क्वचित् तेनुं वर्णन आवे छे ते केवळ उत्सर्ग अपवादनी विशाळ गुंथणीने आधारे छ। आ उत्सर्ग अपवादनी गुंथणीने दिगम्बर दर्शने पण पोखणा दई दई स्वीकारी छ । इतिशम् । નિવેદન કેટલાક અગત્યના કારણે “શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ” ન મે મહિનાનો અંક નિયમ મુજબ બહાર નથી પડી શક્યો અને તેથી મે-જુનને એક સાથે બહાર પાડવો પડ્યો છે, તે માટે અમે અમારા વાચકેની ક્ષમા માગીએ છીએ. --व्यवस्था५४ For Private And Personal Use Only

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