Book Title: Jain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३७१] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ एक समय मद्दाहृत ग्राममें मयङ्कर रोगका उपद्रव हुआ। इससे समस्त ग्राममें त्राहि त्राहि मच गई। लोग गाम छोडकर अन्यत्र जाने लगे। श्रावक वीरनागने भी मद्दाहृत छोड दक्षिण की और प्रयाण किया। मार्गमें भरुच नगर आया। उस समय यह नगर बड़ा सुन्दर और समृद्धिशालो होने के कारण वीरनाग ने यहीं स्थिरता की। उसी अरसे में मुनिचन्द्रसूरि भी परिभ्रमण करते करते वहां आ पहुंचे । वीरनाग उनको वंदन करने गया, वहां स्वधर्मी बन्धुओंने उसकी सेवा शुश्रूषा की और उसे भरुच ही में ठहरने का आग्रह किया। वीरनागको तो जहां अपना निर्वाह हो वहां ठहरना ही था, अतः वहीं स्थिरता की। उसकी स्थिति साधारण होने के कारण घर का कारोबार जरा कठिनता से चलता था । पूर्णचन्द्र जब आठ वर्ष का हुआ तभी से उसे धन्धा शुरू करना पड़ा। कारण उसके घरकी आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। वह भिन्न भिन्न प्रकारके मसालेकी फेरी करने लगा। एक दिन पूर्णचंद्र फेरी करने गया, वहां क्या देखता है कि एक शेठ घरमें से धन बहार फेंक रहा है। वह शेठ अपने धन को कोयले के रूपमें देखता था अर्थात् उसके दुर्भाग्यसे वह धन कोयला हो गया था। यह दृश्य देख पूर्णचंद्र को बड़ा आश्चर्य हुआ और अपने हृदय में कहने लगा कि में तो पैसे के वास्ते गली गली भटकता हूं और यह व्यक्ति धन को इस प्रकार बाहर क्यों फैंक देता है ? उसने शेठसे पूछा शेठ साहिब यह क्या कर रहे हैं? तब शेठ उत्तर देता है तुझे क्या काम है ? तुझे इतना भी नहीं दिखाई देता है कि ये कोयले घर में पडे हैं इनको घरसे बाहर फेंक रहा हूं। पूर्णचंद्र यह उत्तर सुन आश्चर्य में गर्क हो गया और कहने लगा कि मुझे तो यह सब सुवर्ण मोहरे दिखाई देती हैं । तुमको कोयला क्यों दिखाई देता है ? जब सेठने पूर्णचन्द्रका यह उत्तर सुना तो वह अपने हदय में कहने लगा कि यह बालक, अवश्य भाग्यशाली मालूम होता है। तब सेठने पूर्णचन्द्र से कहा यदि तुझे यह सब सुवर्ण मोहरे दिखाई पडती हैं तो इन कोयलों को इस टोकरे में भर कर मुझे दे । ज्योंही पूर्णचन्द्रने उन सुवर्ण मोहरों को स्पर्श किया त्योंही वे सेठ को भी असली रूपमें दिखाई देने लगी। जब सेठको यह ज्ञात हुआ कि इस बालक के स्पर्श मात्र से ही यह चमत्कार बना है तो वह उसपर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे एक सुवर्ण मोहर दी। . पूर्णचन्द्र प्रसन्न होता हुआ अपने घर पहुंचा ओर उपयुक्त घटना पिताजीको कह सुनाई। वीरनाग अपने पुत्रकी यह आश्चर्यजनक घटना सुन प्रसन्न हुए। वीरनाग ने यह चमत्कारिक घटना मुनिचन्द्रमूरि के समक्ष निवेदन की। यह बात सुन सूरिजी अपने हदय में कहने लगे कि For Private And Personal Use Only

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