Book Title: Jain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " जैनबन्धु ” ना लेखकनेलेखक-आचार्य महाराज श्रीमद् विजयलावण्यसूरिजी एक महाशय तरफथी “जैनबन्धु" नामना दिगम्बर मासिकनो तृतीय वर्षीय ७-८ अंक अमने जोवा माटे मोकलाववामां आव्यो। आ अंकना प्रकाशक तथा मुद्रक तरीके अजितकुमारजीनुं नाम प्रांते जणावेल छ । रखेने आ ते ज अजितकुमारजी न होय, के जेणे " श्वेताम्बरमत समीक्षा" मां सत्यथी वेगळी अनेक भ्रमणात्मक घटनाओ गीतरी छे, जेने प्रकाशमां लाववा 'श्री जैन सत्य प्रकाश' मां अमारे 'समीक्षाभ्रमाविष्करण' शीर्षक लेखमाळा शरू करवी पडी छे. अस्तु! ___“जैनबंधु"ना ते अंकना ३५मा पाने ' अपवाद दशामें मांस ग्रहणकी पुष्टि' ए शीर्षक एक लेख फूलचंद जैनना नामथी प्रसिध्ध थयेल छ । आ लेखके करेल आक्षेपोन निर्मूलन आ मासिकमां सविस्तर प्रमाण पुरस्सरं थई चुक्यु छे, छतां ते तरफ आंखमींचामणा करी 'मुखमस्तीति वक्तव्म् ' ए न्यायने अनुसारे युक्तिवादने चोक्खो कर्या सिवाय ज पिष्टपेषण करेल छे. अस्तु ! श्रुतकेवली चतुर्दशवित् भगवान् भद्रबाहुस्वामी प्रणीत परम पावन जे कल्पसूत्र तेनो सनातन वारसो श्वेताम्बरोने मळेल छे । आ वारसामां दिगम्बरो भाग मागी शके तेम नथी, कारण के दिगम्बर मान्यताने खोटी पाडनारी अनेक मान्यताओ आमां आवे छे। आ कल्पसूत्र भद्रबाहुस्वामी महाराजे बनावेल छे एम जो दिगम्बरो मानी ले तो कल्पसूत्रना वचनथी विपरीत बोली या मानी शकाय नहि, त्यारे करवू शं? आ धुंचवणनो उकेल करवा कतिपय दिगम्बर लेखको ए विचार पर आव्या ले आ कल्पसूत्रना प्रणेता भद्रबाहुस्वामी छे ज नहि। प्रस्तुत लेखके पण शरूआतमां आ ज वातने पकडी छे, जुओ शरूआतनो विभाग:___“ श्वेताम्बर समाजमें कल्पसूत्र बहुत माननीय ग्रन्थ है। श्वेताम्बरी भाई इसके रचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहु को कहते है, किन्तु वास्तवमें यह ग्रन्थ उनका लिखा हुआ है नहि, कयोंकि कल्पसूत्रमें उसका रचनाकाल वीर सं. ९८० लिखा है. जबकि भद्रबाहुस्वामी वीर सं. १६२ में हुये हैं।" उपर्युक्त लखाणमां लेखक एम जणाववा मागे छे के कल्पसूत्रमा एवं लखेल छे के आ ग्रन्थनी रचना वीर सं. ९८० मां थयेल छे. बीजी बाजु नजर करीए तो भद्रबाहु स्वामि महाराजनो काल वीर सं. १६२ नो छ माटे कल्पसूत्रना रचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामी होई शके नहि। आ हकीकत असीम जुठाणाथी भरेली छे । कल्पसूत्रमा कल्पसूत्रनी रचनानो काल बतावेल ज नथी. केवल कल्पसूत्रने पुस्तक पर लखवानो काल जणाववामां आवेल छ, जुओः For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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