Book Title: Jain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [३५८] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી.જૈન સત્ય પ્રકાશ बिइयदिणे सिद्धाणं, झाणानलदडुकम्मकट्ठाणं ॥ झाणं कुणंतु भव्वा, भावा रत्तेण वण्णेणं ॥ १० ॥ सुकंतिमभेएहि, तिजोगरोह कमेण जे किच्चा ॥ अफुसमाणगईए, सिद्धिगए ते सया वंदे ॥ ११ ॥ पत्तनिहा अट्ठगुणा, पहण्णेणं तओ य कम्माई ॥ अट्ठपिहाणसमाई, तव्विरहगुणट्ठगविभूई ॥ १२ ॥ अणित्थंथागिइए, साहीणाणंदिए निराबाहे ॥ अपुणरावित्तिगए, सिद्धे वंदामि ते भावे ॥ १३ ॥ अवगाहतिभागुणाऽवगाहणा जाण वाससिद्ध सिला ॥ एरंडाइनिदंसणा, लोगंतगए इगखणेणं ॥ १४ ॥ जं देवाइयसोक्खं तत्तोऽणतं सुहं परं जेसिं ॥ अव्वयपयपत्ताणं, साइअणंतेण ते वंदे ॥ १५ ॥ कयलीथंभसमाणं, भवभोगसुहं विसेस परतंतं ॥ तह णच्चतिय गं-तियं तहा णेव सिद्धाणं ॥ १६ ॥ अण्णाइभोगकज्जं, खुहाणिवित्ती तओ चला संती ॥ जेसिं सासयसंती, ते सिद्धे सव्वया वंदे ॥ ९७ ॥ यं पि सिद्धसम्मं, केवलिणा भासिउं न उण सक्कं ॥ उवमावइरेगेणं, मिलेच्छपुरसोक्खदिट्ठता ॥ १८ ॥ णिग्गुणणंतगुणड्डे, ठिए पइवप्पयास भावेणं ॥ पुण्णकयत्थभयंते, वंदे अकलोदए सिद्धे ॥ १९ ॥ रूवारूवसहावे, णिब्बीए पारमत्थियाणंदे ॥ उवसमियविहावग्गी, सिद्धे झापमि हरिसेणं ।। २० ।। साहावियपुण्णत्तं, जच्चरयणसंनिहं सया जेसिं ॥ तहंगविणासयरे, अणंगरूवेऽवि ते वंदे ॥ २१ ॥ भोगी वि चत्तभोए, सवण्णणिग्वण्ण चंगभावे य ॥ भेयवियोगयसरणे, सत्तियरंगेण ते वंदे ॥ २२ ॥ अण्णाइणं गहणं, सिद्धाणं णेव कम्मविरहाओ || किं लोहचुंबविरहे, लोहागरिसो कया होजा ॥ २३ ॥ केवलणाणुवओगी, परमिद्धे इक्कतीसमुरकखगुणे ॥ चिय कम्माइ धर्मते- निरुत्तसिद्धे सरेमि तया ॥ २४ ॥ For Private And Personal Use Only वर्ष 3] ( अपूर्ण )Page Navigation
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