Book Title: Jain Samaj ka Bruhad Itihas
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 7
________________ उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश तो देश का सबसे बड़ा प्रदेश है । यहां जैन समाज भी 20-25 जिलों में मिलता है । प्रस्तुत इतिहास में हमने नमूने के तौर पर यहां के समाज का ऐतिहासिक दृष्टि से परिचय दिया है जिसमें प्रमुख रूप से आगरा, लखनऊ जैसे कुछ नगरों के नाम उल्लेखनीय हैं। उत्तर-प्रदेश के जैन बन्धुओं ने समाज की गतिविधियों में सबसे अधिक योगदान दिया है और न 2019 करें तो यहां अगेन पानधात दारा देश का नेतृत्व किया है। वर्तमान में साहु परिवार एवं सेठी परिवार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। दक्षिण भारत प्रस्तुत इतिहास में हमने दक्षिण भारत के हैदराबाद, सेलम, मद्रास, बंगलौर, पांडीचेरी एवं बम्बई जाकर समाज का परिचय लेना चाहा | लेकिन बम्बई में हमें कुछ सफलता नहीं मिली और वहाँ की समाज का विस्तृत परिचय नहीं प्राप्त कर सके । फिर भी हमें जो कुछ सामग्री मिली उसी के आधार पर यहां परिचय उपस्थित किया गया है । इसी तरह बंगलौर में भी वहाँ के प्रमुख समाजसेवियों का सहयोग प्राप्त नहीं हो सका। हो हैदराबाद, सेलम, पांडीचेरी एवं मद्रास में वहाँ की समाज का सहयोग मिला। अंतिम अध्याय में हमने स्वतंत्रता सेनानियों का भी अति संक्षप्त परिचय एवं नामोल्लेख किया है । जैनों ने स्वतंत्रता आंदोलन में जो महान योगदान दिया है उसके लिये तो एक अलग से पुस्तक लेखन की आवश्यकता है। हम इतिहास के प्रत्येक खंड में प्रदेशानसार स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय देते रहेंगे। अन्त में इतिहास को उन समाज सेवियों के परिचय के साथ समाप्त किया है जिनका परिचय इसके पूर्व नहीं दिया जा सका। प्रस्तुत इतिहास को हमने निष्पक्ष दृष्टि में लिखने का प्रयास किया है और समाज में जितना जिसका योगदान रहा उसको बिना हिचक के स्वीकार किया है। घटनाओं का वास्तविकता के आधार पर वर्णन किया गया है । समग्र समाज का इतिहास लिखने का और वह भी वर्तमान शताब्दी का जिसको हमने देखा है, यह प्रथम प्रयास है इसलिये उसका मूल्यांकन करते समय इम दृष्टि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये। इतिहास खंड के प्रारंभिक पृष्ठों को परमपूज्य आचार्य विद्या सागर जी महाराज, परमपूज्य आचार्य विद्यानंद जी महाराज, परमपूज्य आचार्य सन्मति सागर जी महाराज, परमपूज्य गणधराचार्य कुंथुसागर जी महाराज, परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज, गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी माताजी को अवलोकन कराया है और सभी ने अपना शुभाशीर्वाद देने को महतो कृपा की है । परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज ने तो विस्तृत भूमिका लिखने की महती कृपा की है। आचार्य श्री तो स्वयं इतिहास पुरुष हैं तथा विद्वानों एवं समाजसेवियों के लिये प्रेरणा स्रोत हैं। आचार्य श्री मन्मति सागर जी महाराज एवं आचार्य कुंथुसागर जी महाराज ने तो अपना लिखित शुभाशीर्वाद दिया है, जो हमारे लिये सम्बल का कार्य करेगा। इतिहास की खोज में नगरों एवं ग्रामों का भ्रमण इतिहास लेखन के लिये मुझे राजस्थान, पूर्वाञ्चल,विहार, उत्तर-प्रदेश,मालवा,महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के 100 से भी अधिक ग्रामों एवं नगरों में जाना पड़ा और वहाँ के समाज का सहयोग प्राप्त कर बिखरी हुई सामग्री का संकलन किया। ऐसे ग्रामों एवं नगरों में जयपुर, पोजमाबाद, अजमेर केकड़ी, नसीराबाद, ब्यावर, मालपुरा, टोंक, टोडारायसिंह, निवाई, सांभर, कुचामन, पंचवा, लाडनूं, सुजानगढ़, सीकर, राणोली, नागौर, मेड़तासिटी, अलवर, भीलवाड़ा, मांडलगढ, शाहपुरा, सवाई माधोपुर, रेनवाल, कोटा, बंटी, झालावाड़ बिजोलिया, बारां, जोबनेर दौसा, रामगंजमंडी झालरापाटन, पूर्वाञ्चल में गोहाटी, डीमापुर, तिनसुकिया, डिब्रूगढ, मनीपुर, नल्य.ड़ी, विजयनगर, बिहार में डाल्टनगंज, गया, औरंगाबाद, रफीगंज, हजारीबाग. मरोनिया र मगड़ मारथा,मालत्रा में उज्जन लाकर रख इन्दौर उत्तरप्रदेश में लखनऊ, अपरा, सीतापुर. गोरखपुर, बडौत.

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