Book Title: Jain Samaj ka Bruhad Itihas
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 5
________________ (11) प्रस्तुत इतिहास मुख्यतः दो खंडों में विभाजित है। इतिहास खंड में इतिहास के स्रोतों पर प्रकाश डाला गया है। महावीर काल में जैन समाज, जातियों की संरचना, मुस्लिम काल में जैन समाज, बिहार एवं उड़ीसा, बंगाल एवं आसाम, गुजरात, दक्षिण भारत, हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर में जैन समाज की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। वर्तमान शताब्दी के इतिहास के अंतर्गत शताब्दी के प्रारंभ में समाज की स्थिति, सामाजिक संगठनों के उदय के साथ अखिल भारतीय स्तर की सामाजिक संस्थाएं जैसे महासभा परिषद,महासमिति शास्त्री परिषद्, विद्वत परिषद.तीर्थ क्षेत्र कमेटी के परिचयात्मक इतिहास के अतिरिक्त उनके कार्यों को समीक्षा की गई है इसके अतिरिक्त 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में होने वाले समान सेवियों के जीवन एवं उनकी सामाजिक सेवाओं के साथ सामाजिक घटनाओं पर प्रकाश डाला गया है । इसके आगे सन् 1930 से 1950 तक. सन् 1951 से 1970 तक, सन् 1971 से 1980 तक एवं 1981 से 1100 तक होने वाली सामाजिक घटनाओं. आयोजनों एवं प्रमुख समाज सेवियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को कालक्रमानुसार उजागर किया गया है । इसी के साथ विगत पचास वर्षों में दिबंगत होने वाली सामाजिक विभूतियों का स्मरण किया गया है तथा उनके द्वारा की गई सेवाओं पर प्रकाश डाला गया है। जो इतिहास का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसी खंड में वर्तमान समय के प्रमुख बीस आचार्य एवं साधुगण, राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख बीस विद्वज्जन एवं इसी तरह समाज का नेतृत्व करने वाले अष्ठिजनों के जीवन पर प्रकाश इतिहास का प्रमख अंग बन गया है। इसी के साथ सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले जिन साधुओ विद्रजनों एक श्रेष्ठीजनों को विगत पचास वर्षों में अभिनंदन पंथ भेंट किये गये अथवा जिनकी स्मृति में स्मृति पंथ निकाले गये उन सभी का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इन महान आत्माओं द्वारा की गई सामाजिक सेवाओं के कारण ही ये सब हमारे लिये अभिनंदनीय माने जाते हैं। सर सेठ हुकमचंद जी से लेकर अब तक 3) पंथ प्रकाशित हुये हैं। पूर्वाञ्चल प्रदेश का इतिहास इसके पश्चात् शेष इतिहास को पूर्वाञ्चल प्रदेश, राजस्थान, विहार, मालवा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में विभक्त करके एक-एक प्रदेश का सामाजिक इतिहास दिया गया है जिसका प्रारंभ पूर्वाञ्चल प्रदेश के सामाजिक इतिहास से किया गया है। इस प्रदेश में वर्तमान में 41 नगरों एवं गाँवों में जैन समाज के परिवार रहते हैं जिनको संख्या एवं वहाँ पर स्थित जैन मंदिरों का उल्लेख किया गया है साथ ही में गोहाटी, विजयनगर, डिब्रुगढ,नलबाड़ो,तिनसुकिया, सिल्चा,डीयापुर.मनीपुर जैसे बड़े नगरों की समाज का विस्तृत परिचय दिया गया है। यशस्वी समाज सेवियों का इतिहास उक्त ऐतिहासिक परिचय के साथ पूर्वाञ्चल प्रदेश के 13 दिवंगत समाजसेवियों 30 समाज के सजग प्रहरियों एवं 71 यशस्वी समाज सेवियों का सचित्र परिचय दिया गया है। परिचय में समाज सेवियों के राजनेतिक एवं धार्मिक योगदान को विशेष चर्चा की गई है तथा अब तक प्रकाशित होने वाले परिचयों से थोड़ा अलग हटकर इतिहास की दृष्टि से उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है । दिवंगत समाज सेवियों का उनके परिवार वालों से तथा शेष समाज सेवियों से उनसे स्वयं से :नोत्तर के रूप में जानकारी प्राप्त कर परिचय लिखा गया है। राजस्थान में जैन समाज एवं उसके यशस्वी समाज सेवी राजस्थान : इसके पश्चात् राजस्थान खंड प्रारंभ होता है । इसमें सर्वप्रथम रजस्थान प्रदेश के जैन समाज का एक संक्षिप्त सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है साथ ही में राजस्थान में पायी जाने वाली 9 प्रमुख जातियों का संक्षिप्त परिचय के साथ सभी जिलों में प्रमुख जैन नगरों का नामोल्लेख एवं राजस्थान के छैन तीर्थों एवं दस हजार से अधिक जैन समाज की जनसंख्या वाले जिलों का उल्लेख किया गया है। राजस्थान के सर्वेक्षण के बाद ढूंढाड प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय प्रस्तुत किया गया है । जयपुर राज्य का नाम पहिले ढूंढाड प्रदेश था और यह प्रदेश उसी नाम से प्रसिद्ध था । जयपुर नगर का वर्तमान सामाजिक स्वरूप एवं नगर में सापाजिक

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