Book Title: Jain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya
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३०.
(ख)
३१. (क)
(ख)
३२. (क)
ध्यान का मूल्यांकन
पोलास चेइयंमि ठिएगराई महापड़िमं । । सोहम्मकप्पवासी देवो सक्क्स्स सो अमरिसेणं। सामाणि संगमओ बेइ सुरिंदं पडिनिविट्ठो ।। तेलोक्कं असमत्थंति बेह एतस्स चालणं काउं । अज्जेव पासह इमं ममवसगं भट्ट जोगतवं । । अह आगओ तुरंतो देवो सक्कस्स सो अमरिसेणं । कासी य हडवसग्गं मिच्छद्दिट्ठी पडिनिविट्ठो ।। धूली पिवीलिआओ उद्दंसा चेव तहय उण्होला। विछु नउला सप्पा य मूसगा चेव अट्ठमगा ।। हत्थी हथिणिआओ पिसायए घोररूव वग्घो य। थेरो थेरी सूओ आगच्छइ पक्कणो य तहा ।। रबरवाय कलंकलिया कालचक्कं तहेव या पाभाइय उवसग्गे वीसइमो होइ अणुलोमो ||
आवश्यक चूर्णि, निर्युक्ति गा. ५०६ की
आवश्यक नियुक्ति गा. ४९७-५०४
जघन्येषु कटपूतनाव्यन्तरी शीतं, मध्यमेषु काल चक्रं, उत्कृष्टेषु शल्योद्धरणं कर्णयोः । आवश्यक चूर्णि गा. ५२५ की पृ. २९३
अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता एवं आमोसहिपत्ता, सव्वोसहिपत्ता
जल्लोसहि पत्ता, विप्पोसहिता, अप्पेगइया संभिन्नसोया । । ओववाइयसुत्त (सुत्तागमे) पृ. ७
कफविपुष्मलामर्श - सर्वौषधि - महर्द्धयः । संभिन्नस्रोतालब्धिश्च यौगं ताण्डवडम्बरम् ।।
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एष सर्वोऽपि सर्वोौषधिप्रकारः । मलः किल समाम्नातो द्विविधः सर्व- दहिनाम् ।।
योगशास्त्र स्वोपज्ञ भाष्य १ / ८
शरीरमन्तरुत्पन्नैर्व्याधिभिर्विविधैरिदम् । दीर्य्यते दारूणैर्दारु दारुकीटगणैरिव ।। कच्छूशोषज्वरश्वासारुचिकुक्ष्यक्षिवेदनाः ।। सप्ताधिसेहे पुण्यात्मा सप्तवर्षशतानि सः । सिद्धलब्धिरपि व्याधि बाधां सोढा तपस्यति । सनत्कुमारो भगवानितीन्द्रस्त्वामवर्णयत् ।। योगिनां योगमाहात्म्ययात्पुरीषमपिकल्पते ।
योगशास्त्रस्वोपज्ञभाष्य पृ. २३-२४
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