Book Title: Jain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 624
________________ सुषम-सुषम - अवसर्पिणी काल का पहला आरा जिसमें सब प्रकार के सुख ही सुख अर्थात् अत्यधिक सुख होता है। सूत्र - महावीर द्वारा कथित आगम साहित्य सूत्र कहलाता है। सूक्ष्म - जो सूक्ष्म नामकर्म के उदय से सूक्ष्म शरीर में रहते हैं अर्थात् जो जीव काटने से कटे नहीं, छेदने से छिदे नहीं, भेदने से भिदे नहीं, अग्नि में जले नहीं, दूसरी वस्तु से रुके नहीं, दूसरी वस्तु को रोके नहीं, छद्मस्थ को नजर आये नहीं और केवली भगवान् के ज्ञानगम्य हों उसे सूक्ष्म कहते हैं। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति ऐसे सूक्ष्म के पांच प्रकार हैं। वे संपूर्ण लोक में भरे हुए हैं। सूक्ष्म अद्धापल्योपम - सूक्ष्म उद्धार पल्य में से सौ-सौ वर्ष के बाद केशाग्र का एक-एक खंड निकालने पर जितने समय में यह पल्य खाली हो जाता है उतने समय को सूक्ष्म अद्धापल्योपम कहते हैं। सूक्ष्म अद्धासागरोपम - दस कोटा-कोटी सूक्ष्म अद्धापल्योपम का सूक्ष्म अद्धासागरोपम कहलाता है। सूक्ष्म उद्धार पल्योपम - द्रव्य क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात गुणी सूक्ष्म अवगाहनावाले केशाग्र खंडों से पल्य को ठसाठस भरकर प्रति समय उन केशाग्र खंडों में से एक-एक खंड को निकालने पर जितने समय में वह पल्य खाली हो उतने समय को सूक्ष्म उद्धार पल्योपम कहते हैं। ___सूक्ष्म उद्धार सागरोपम - दस कोटा कोटी सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है। सूक्ष्म काल पुद्गल परावर्त - जितने समय में एक जीव अपने मरण के द्वारा उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के समयों को क्रम से स्पर्श कर लेता है। सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति - शुक्ल ध्यान का तृतीय चरण जिसमें सूक्ष्म शरीर योग का आश्रय देकर दूसरे शेष योगों का निरोध होता है। सूक्ष्म क्रिया निवृत्ति शुक्लध्यान- जिस शुक्लध्यान में सर्वज्ञ भगवान द्वारा योग निरोध के क्रम में अन्ततः सूक्ष्म काययोग के आश्रय से अन्य योगों को रोक दिया जाता है। सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्त - कोई एक जीव संसार में भ्रमण करते हुए आकाश के किसी एक प्रदेश में मरण करके पुनः उस प्रदेश के समीपवर्ती दूसरे प्रदेश में मरण करता है, पुनः उनके निकटवर्ती तीसरे प्रदेश में मरण करता है। इस प्रकार अनन्तर-अनन्तर प्रदेश में मरण करते हुए जब समस्त लोकाकाश के प्रदेशों में मरण कर लेता है तब उतने समय को सूक्ष्म पुद्गल परावर्त कहते हैं। __ सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम - बादर क्षेत्र पल्य के बालागों में से प्रत्येक के असंख्यात खंड करके पल्य को ठसाठस भर दो। वे खंड उस पल्य में आकाश के जितने प्रदेशों को स्पर्श जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ५६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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