Book Title: Jain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 639
________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ( भाग - १ ) : पं. बेचरदास दोशी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, जैनाश्रम, वाराणसी- ५, १९६६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग-३) आगमिक व्याख्याएं : डॉ. मोहनलाल मेहता, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, जैनाश्रम, वाराणसी - ५, १९६७ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ( भाग - ४ ) - कर्म साहित्य व आगमिक प्रकरण : डॉ. मोहनलाल मेहता व हिरालाल र. कापडिया, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, जैनाश्रम, वाराणसी - ५, १९६८ जैनेंद्र सिद्धांत कोश : ( भाग - १ से ४ ) : क्षु. जिनेंद्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी- ५, १९७०, ७१, ७२, ७३ झाणज्झयणं (ध्यान शतकम्) : श्री जिन भद्रगणि क्षमाश्रमण, ओरियंटल रिसर्च ट्रस्ट, १६ मॅन्गपन स्ट्रीट, मद्रास - १ तत्त्वार्थ सूत्र : उमा स्वामी, विवेचक - सुखलालजी संघवी, जैन संस्कृति संशोधन मंडल, हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस-५, द्वितीय, १९५२ तत्त्वार्थवार्तिकम् (राजवार्तिक द्वितीय, प्रथम भाग) : भट्टाकलंकदेव, भारतीय विद्यापीठ, काशी, वि. सं. २०१४ तत्त्वानुशासन : श्रीमन्नागसेनाचार्य, श्री नवीनचंद अंबालाल शहा, जैन साहित्य विकास मंडल, बंबई-५७, ई. स. १९६१ तत्त्वानुशासन ( ध्यान शास्त्र ) : श्री रामसेनाचार्य प्रणीत, दरबारीलाल जैन, कोठिया, मंत्री वीरसेवा मंदिर ट्रस्ट, २१, दरियागंज, दिल्ली-६, प्रथम - १९६३ तत्त्वज्ञानतरङ्गिणी : भट्टारक ज्ञानभूषण, अमर ग्रंथमाला, उदासीन आश्रम, तुकोगंज, इंदोर, वि. स. २४८० तंत्र महासाधना : डॉ. चमनलाल गौतम, संस्कृति संस्थान, बरेली (उ. प्र. ) द्वितीय, १९७६ तंत्र और संत : डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी, साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद - ३, १९७५ तप अने योग : नगीनदास गिरधरलाल सेठ, श्री जैन सिद्धांत सभा, प्रथम, १९६४ - तिलोक काव्य संग्रह : कविकुल भूषण पूज्यपाद श्री तिलोक ऋषिजी म., जैन पुस्तकालय, पाथर्डी (अहमदनगर), प्रथम, १९५६ तिलोक शताब्दी अभिनंदन ग्रंथ : श्री रत्न जैन पुस्तकालय, पाथर्डी, ई.स. १९६१ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व ५७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only श्री रत्न www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650