Book Title: Jain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 635
________________ अध्यात्मसार - अध्यात्मोपनिषद ज्ञानसार प्रकरण रत्नत्रयी, श्रीमद्यशोविजयगणि प्रवर प्रणीता, केशरबाई ज्ञान भंडार, स्थापक : संघवी-नगीनदास करमचंद, प्रथम, वि. सं. १९९४ अध्यात्मयोग और चित्तविकलन : वेंकट शर्मा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, प्रथम, विक्रमाब्द २०१४ अभिधम्म कोश (भा. ३, ४) : आचार्य वसुबंधु, बौद्धभारती, वाराणसी, १९७२ अभिधानचिंतामणि : श्री हेमचंद्राचार्य, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, प्रथम,१९६४ अभिधान राजेंद्र कोश : श्रीमद्विजयराजेंद्र सूरीश्वर, श्री जैन श्वेताम्बर समस्त - सङ्घन महापरिश्रमतः, रतलाम १९१३ (भा.४) अभिज्ञान शाकुंतल : कालिदास, महाजन पब्लिशिंग हाउस, अहमदाबाद, तृतीय, १९६० इ. स. . __ अष्टपाहुड : श्री कुंदकुंदाचार्य : श्री मदनलाल हीरालाल दिगंबर जैन पारमार्थिक दृष्टांतर्गत, मारोठ (राज.) १९५९ अष्टांगयोग साधना आणि सिद्धी (मराठी) : स्वामी वीरानंद, रघुवंशी प्रकाशन, ३४७१/१२३ पंतनगर, घाटकोपर, (मुंबई ७५) आत्मयुग का जैन दर्शन : पं. दलसुख मालवणिया, संमति ज्ञानपीठ, आगरा, १९६६ आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन मुनि श्री नगराजजी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, प्रथम १९६९ ई. स. आगम सारिणी ग्रंथ : श्री ज्ञानचंदजी स्वामी, लखमशी केशवजी कच्छ, पत्रीवाला, द्वितीय, १९४० आचार्य श्री तुलसी अभिनंदन ग्रंथ, आ. श्री तुलसी धवल समारोह समिति, वृद्धिचंद जैन, दिल्ली ___ आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रंथ, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता -१, १९६१ आत्म प्रकाश : श्रीमद् बुद्धिसागर सूरीश्वरजी, श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, मुंबई, तृतीय, संवत-२०१० आत्मवाद : मुनि फूलचंद्र ‘श्रमण' आचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समिति, लुधियाना, प्रथम, १९६५ आत्मानुशासन : गुणभद्र, कामेंट्री बाय-प्रभाचंद्र, गुलाबचंद्र, हीराचंद्र दोशी, सोलापूर,, प्रथम, १९६१ ५७४ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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