Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 66 ॥ ॐ नमः ॥ अथ श्री शांतिनाथनां पंच कल्याणकनुं स्तवन. " •<+&&&•S++ दुहा - हवे राणी अचिरा नित्य प्रतें, मज्जन करि जिनपूजा ॥ अप मंगलीक दूरें तजे, करम सबल मल धूज ॥ १ ॥ अति तीखुं कटुक मधु, कषाय अम्लक त्याग ॥ जेह जेहवि ऋतुओ होय; ते ह सेवे सराग ॥ २ ॥ जब मसवाडा नव हुआ, तेरस वदि जेठ मास ॥ शुभ लग्नें सुत जनमीयों, सयल भुवन सुख वास ॥ ३ ॥ ढाल ॥ राग काफी ॥ तप पदनें पूजीजे हो प्राणि ॥ तप ॥ ए देशी ॥ जिन वंदन कुं जइयें हो सहीयो जिन० । ए आकणि ॥ छ पन्न दिग् कुमरि सिंहासन, कुंजर कानसम डोलें ॥ अवधि नाण तव प्रयुंजी जाणी, हरखीत थइ एम बोले हो ॥ स० जि० ॥ २ ॥ भोगंकरा भोगवती सुभोगा, भोग मालिनि सुवच्छा ॥ वत्समित्रा पुप्फमाला नंदिता, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Pitvate And Personal Use Only

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