Book Title: Jain Nyaya Panchashati
Author(s): Vishwanath Mishra, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 32
________________ 15 जैनन्यायपञ्चाशती शब्दत्वसाक्षात्कारे तु समवेतसमवायः सन्निकर्षः। श्रोत्रसमवेते शब्दे शब्दत्वस्य समवायात्। अभावप्रत्यक्षे विशेषणविशेष्यभावः सन्निकर्षः। घटाभाववद् भूतलमित्यत्र घटाभावो विशेषणं भूतलञ्च विशेष्यमिति अस्य सन्निकर्षस्य स्वरूपम्। एभिः षड्विधसन्निकर्पोरेव जायते प्रत्यक्षज्ञानम्।तदुक्तमपि-'इन्द्रियार्थसन्निकर्षजन्यं ज्ञानं प्रत्यक्षम्'।' अनया रीत्या प्रत्यक्षप्रमायाः करणत्वात् इन्द्रियार्थसन्निकर्ष एव प्रमाणमिति वदन्ति नैयायिकाः। एतन्मतं दूषयति प्रस्तुतकारिकया।सन्निकर्षः स्वस्य-आत्मनः सन्निकर्षस्य तथा परस्य-पदार्थस्य चव्यवसितौ-निश्चये साधकतमो नास्ति। यतो हि सन्निकर्षो जडः।जडपदार्थो नात्मानं जानाति न वा परपदार्थमेव जानाति। तस्मात् सन्निकर्ष आत्मनः परस्य च निश्चायकत्वे साधकतमः कथं भवितुमर्हति? घटो जडपदार्थः स्वस्य परस्य च व्यवसितौ साधकतमो न भवति, एवमेव घटवत् जडपदार्थः सन्निकर्षोऽपि स्व-पर व्यवसितौ नैव भवति साधकतमः। तस्मात् ज्ञानमेव प्रमाणमिति स्वीकर्त्तव्यम्। ज्ञानं स्वपरप्रकाशं भवति। तत् खलु जानाति आत्मानं वस्तूनि च। तस्मात् स्वप्रकाशकत्वे सति पर-प्रकाशकत्वमेव ज्ञानत्वम्। तदेव च प्रमाणमिति नानास्ति कश्चन विसंवादः। अत एव यथार्थज्ञानस्य-स्वपरव्यवसायिज्ञानस्य प्रामाण्यं स्वीक्रियते। अनेन विवेचनेन तेऽपि पराकृता एव ये जडीभूतान् ज्ञातृव्यापारकारक-साकल्यप्रभृतीन् प्रमाणमङ्गीकुर्वन्ति। प्रमेय की सिद्धि प्रमाण से ही होती है, यह दर्शन का सर्वमान्य सिद्धान्त है, इसलिए प्रमाण क्या है और उसका स्वरूप क्या है? यह दर्शनशास्त्र का प्रमुख विषय है। दार्शनिकों ने इस पर विचार किया है। न्यायदर्शन के अनुसार प्रमाकरण (यथार्थज्ञान का करण) ही प्रमाण है, यह प्रमाण का लक्षण किया गया है। प्रमा का अर्थ हैयथार्थज्ञान। जो वस्तु जैसी है उसका वैसा ही ज्ञान करना अर्थात् उसको वैसा ही जानना यथार्थज्ञान है। घटत्व धर्म से युक्त घट को घट के रूप में जानना यथार्थज्ञान १. केदारनाथत्रिपाठीव्याख्यातः तर्कसंग्रहः, पृ. ५१। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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