Book Title: Jain Nyaya Panchashati
Author(s): Vishwanath Mishra, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ 18 जैनन्यायपञ्चाशती प्रमाण के दो भेद बतलाए गए हैं-प्रत्यक्ष और परोक्ष। इनमें जो विशद अथवा स्पष्ट है, वह प्रत्यक्ष है और जो अविशद अथवा अस्पष्ट है, वह परोक्ष है। न्यायप्रकाशिका - प्रमाणं द्विविधं भवति-प्रत्यक्षं परोक्षञ्च। तत्र यद् विशदं स्पष्टं भवति तत्तु प्रत्यक्षमुच्यते। यद् ज्ञानम् अविशदमस्पष्टं भवति तत्तु परोक्षं कथ्यते। अत्र प्रत्यक्षशब्दे यो हि'अक्षशब्दः तस्य द्वावौँ स्तः-अक्षम्-इन्द्रियम्, अक्षो जीवो वा। अक्षं प्रतिगतं प्रत्यक्षम्। इन्द्रियेणात्मना च जायमानं ज्ञानं प्रत्यक्षम्। अक्षेभ्योऽक्षाद् वा परतो वर्तते इति परोक्षम्। .. इदमत्रावधेयं यत् प्रत्यक्षशब्दघटकस्याक्षशब्दस्यार्थो यदा आत्मा-जीवो वा क्रियते तदा अक्षं प्रतिगतं प्रत्यक्षमित्युच्यते तदा अवधि-मनःपर्यायकेवलान्येव प्रत्यक्षप्रमाणपदेन गृहीतानि भविष्यन्ति। अत्र नेन्द्रियाणां पौद्गलिकानामावश्यकता, किन्तु अत्र तु चेतनस्य सर्वथावरणविलयपुरस्सरः स्वरूपाविर्भाव एव केवलम्। अत एवेदं केवलज्ञानेति नाम्ना ख्यातं प्रत्यक्षम्। इदमेव पारमार्थिक-प्रत्यक्षमप्युच्यते। यस्मिन् ज्ञाने इन्द्रियाणां मनसश्चापेक्षा भवति तत् सांव्यवहारिकप्रत्यक्षमित्युच्यते। अवग्रहादय-श्चत्वारोऽस्य भेदाः भवन्ति। एतविपरीतं साहाय्यसापेक्षमविशदमस्पष्टं ज्ञानं परोक्षप्रमाणमित्युच्यते। अस्य ज्ञानस्योपलब्धौ आत्मनः इन्द्रियस्य चापेक्षा भवतीति ज्ञातव्यमत्र। प्रमाण दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष और परोक्ष। इनमें जो ज्ञान विशदस्पष्ट होता है उसे प्रत्यक्ष कहा जाता है और जो ज्ञान अविशद-अस्पष्ट होता है उसे परोक्ष कहा जाता है। यहां प्रत्यक्षशब्द में प्रयुक्त जो 'अक्ष' शब्द है उसके दो अर्थ होते हैं-इन्द्रिय और जीव। 'अक्षं प्रतिगतं प्रत्यक्षम्' अर्थात् जो ज्ञान अक्ष-आत्मा और इन्द्रियों पर आधारित हो उसे 'प्रत्यक्ष' और जो ज्ञान अक्ष-आत्मा और इन्द्रियों से परे होता है उसे परोक्ष कहा जाता है। यहां पर ध्यातव्य है कि जब प्रत्यक्षशब्द में प्रयुक्त अक्षशब्द का अर्थ आत्मा या जीव किया जाता है और 'अक्षं प्रतिगतं प्रत्यक्षम्'-ऐसी व्युत्पत्ति की जाती है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130