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___ जैनन्यायपञ्चाशती उपमानीभूता पदार्थश्चोपमेयः। त्रिपथगामित्वं चं साधारणो धर्मः। यथाशब्दश्च उपमावाचकः। अपरमुदाहरणं बुबुदस्यास्ति। बुबुदो जलस्याकारविशेषः। वर्षौ बाहुल्येन अवलोक्यन्ते बुबुदाः। जलाघातेन वाय्वाद्याघातेन वा तडागादिष्वपि स्थानेषु दृश्यन्ते बुबुदाः। यदा जले बुद्बुदा उत्पद्यन्ते तदा उत्पत्तिकाले जलम्। यदा जले बुबुदा विपद्यन्ते तदा व्ययकालेऽपि जलम्। एवं उत्पादव्यययोरुभयोरवस्थयोः जलं वर्तते। अनेन प्रकारेण अवस्थात्रयेऽपि जलं तिष्ठत्येव।
आभ्यामुदाहरणाभ्यां वस्तुनस्त्रयात्मकत्वं स्पष्टमेव सिद्धयति। ...
पदार्थ का लक्षण सत् है। 'अस्तीति सत्'-इस व्युप्तत्ति के आधार पर अस्तित्ववान् पदार्थ सत् है। इस सारे जगत् में जितने अस्तित्ववान् पदार्थ हैं वे सभी सत्पद के वाच्य हैं। इस रीति से सत्, पदार्थ और वस्तुये तीनों शब्द समानार्थक हैं। इस सत् पदार्थ में जगत् के समस्त जड़-चेतन पदार्थों का समावेश होता है। इसलिए सत् एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इसका क्या लक्षण है, यह विचारणीय प्रश्न है। यह आश्चर्य नहीं है कि इस विषय में दार्शनिकों का मतभेद है। कुछ दार्शनिकों का कहना है कि 'यत् सत् तत् क्षणिकम्' अर्थात् जो सत् है वह क्षणिक है। क्षणिक ही सत् है। अर्थक्रियाकारित्व ही सत् है। यह सत् नित्य पदार्थ में नहीं होता। एकान्त नित्य आकाश आदि के द्वारा कोई अर्थक्रिया नहीं देखी जाती, इसलिए नित्य पदार्थ सत् नहीं है, क्षणिक ही सत् है। दूसरे दार्शनिक कहते हैं कि जो क्षणिक पदार्थ हैं। जो क्षणभर भी स्थिर नहीं रहता वह अर्थक्रिया कैसे कर सकता है? इसलिए सत् तत्त्व क्षणिक और अनित्य नहीं है। किन्तु नित्य तत्त्व ही सत् हैं, ऐसा दूसरे कहते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि नित्य तत्त्व भी सत् नहीं है। एकान्त नित्य में भी अर्थक्रियाकारित्व असिद्ध ही है, जैसे आकाश।
इस विषय में जैनदर्शन पदार्थ को परिवर्तनशील और नित्य मानता है। गणधर ने भगवान् से पूछा-'तत्त्व क्या है? तब भगवान् तीर्थंकर महावीर ने उत्तर दिया जो उत्पन्न होता है, नष्ट होता है और ध्रुव रहता है, वह तत्त्व है। आचार्य उमास्वाति ने भी इसी तथ्य का प्रतिपादन किया-'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्'अर्थात् जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त होता है वह सत् है। इसका उदाहरण
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