Book Title: Jain Nyaya Panchashati
Author(s): Vishwanath Mishra, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 101
________________ x4 जैनन्यायपञ्चाशती अस्य प्रश्नस्य उत्तरे वक्तव्यमिदमस्ति यत् प्रयोगोऽयं निश्चयनय दृष्ट्यास्ति न तु व्यवहारनयदृष्ट्या। अतो व्यवहारं सम्पादयितुं द्रव्यदृष्टिंराश्रयणीया, वस्तुनोऽनेकान्तत्वञ्च स्वीकरणीयम्। वस्तुनोऽनेकान्तत्वे स्वीकारे तस्यैकत्वमनेकत्वं नित्यत्वमनित्यत्वञ्चेति सर्वं विधिवत् संसाधितं भवति। वस्तु यदा अनेकान्तात्मकं भवति तदा तत्र द्रव्यपर्यायात्मके वस्तुनि यदा द्रव्यदृष्ट्या वस्तु परिचीयते तदा तत्र द्रव्यस्य नित्यत्वात् एकत्वाच्च वस्तुनो नित्यत्वमेकत्वञ्च सिद्धयति। यदा च पर्यायदृष्ट्या क्रियते विचारोवस्तुनस्तदा पर्यायाणामनेकत्वात् अनित्यत्वात् च वस्तुनोऽनित्यत्वमनेकत्वञ्च सिद्धयति। एतत् सर्वमनेकान्तवाद एव सुलभम्। एकान्तवादे तु वस्तु नित्यमेव स्यादनित्यमेव वा। एवमेव एकमेव स्यादनेकमेव वा न तु नित्यानित्यत्वम् एकानेकत्वं वा। अत एव कांरिकाकारस्येय-मुक्तिः सर्वथा सार्थिका यत् भावानां स्थिति कान्ततः क्वचिदिति। भावानां वास्तविकस्वरूपं नित्यानित्यतादिकं सर्वमनेकान्तवादत एव ज्ञातुं शक्यते। जैनदर्शन अनेकान्तवादी दर्शन है। उसका सारा चिन्तन और पदार्थ-विश्लेषण सापेक्षता से होता है। एकान्तवादी दृष्टि कभी सत्यग्राह्य नहीं होती। सत्य की उपलब्धि के लिए उभयात्मक दृष्टि की अपेक्षा होती है। जैनदर्शन में वस्तु को जानने के लिए दो दृष्टियां सम्मत हैं-द्रव्यदृष्टि और पर्याय-दृष्टि। गुण और पर्यायों के आश्रय-आधार को द्रव्य कहते हैं। कोई भी वस्तु अनेक पर्यायों के सम्मिलन से निर्मित होती है। यदि वस्तु को पर्याय की दृष्टि से देखा जाए तो एक ही वस्तु अथवा घट आदि में अनेक पर्यायों की अवस्थिति से एक ही घट कथञ्चित् अनेक घट भी कहा जा सकता है। पर्यायों की अनेकता को वस्तु में समारोपण करके ही कहा जाता है कि वस्तु या घट अनेक हैं। मृत्पिण्ड की अनेक पर्याएं घट का कारण हैं और घट उन पर्यायों का कार्य है। कारणधर्म का कार्य में समारोपण किया जाता है। इसीलिए पर्यायगत नानात्व को घट आदि वस्तु में आरोपित करके ही कहा जाता है कि यह घट एक होते हुए भी कथञ्चित् अनेक है। यहां यह शंका होती है कि एक ही घट यदि अनेक होता है तो एक ही घट से अनेक घटों का कार्य सम्पादित क्यों नहीं हो जाता? वहां अनेक घटों की क्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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