Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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श्रुतदान की परम्परा के पुण्य पुरुष श्री रिखबचंदजी झाड़चूर, मुंबई
किसी भी व्यक्तित्व को शब्दों में बाँधना दुष्कर है क्योंकि शब्द सीमित है और व्यक्तित्व की ऊँचाईयाँ अपरिमित होती है। अपरिमित को परिमित में बाँधना सागर को गागर में समाने का बाल प्रयास है। ऐसे अपरिमित व्यक्तित्व के धनी श्री रिखबचंदजी झाड़चूर का जन्म जौहरियों की नगरी जयपुर में सन् 1953 को हुआ। आपके पिता श्री गुलाबचंदजी झाड़चूर समाज के प्रतिष्ठित जौहरी होने के साथ-साथ धर्मनिष्ठ आराधक थे। सेवा परायणा मातु श्री शान्ति देवी के द्वारा 11 भाई-बहिनों को धर्म संस्कारों की खुशबू से नवाजा गया। माता-पिता के संस्कारों का सिंचन करते हुए आप सभी भाई-बहिन अपने-अपने क्षेत्र में जैन धर्म की पताका फहरा रहे हैं।
रिखबचन्दजी ने अपना शैक्षणिक अध्ययन (M.Com., L.L.B.) पूर्ण करने के पश्चात मुम्बई आकर पिताजी के कारोबार को आगे बढ़ाया। आज मुम्बई या जयपुर ही नहीं अपितु सम्पूर्ण खरतरगच्छ समाज आपकी सरलता, दानवीरता एवं सामाजिक उत्थान के प्रयासों से परिचित है।
पिछले 10 वर्षों तक अखिल भारतीय खरतरगच्छ महासंघ की कार्यकारिणी सदस्य के रूप में रहने के बाद आप अभी अध्यक्ष पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। आपके सामाजिक वर्चस्व के कारण नवनिर्मित तलेगाँव पार्श्वनाथ जिनालय के ट्रस्टी पद से आपको मनोनीत किया गया है।
जिन शासन के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित आपका जीवन एक महान प्रेरणा सत्र है। व्यक्ति में छिपी हई प्रतिभाओं को उजागर करने एवं जन चेतना को उत्साहित करने में आप सदैव अग्रणी रहते हैं। ज्योति संदेश वार्ता में प्रायोजित प्रश्नोत्तरी के पुरस्कार प्रायोजक का लाभ आप ही ले रहे हैं। श्रुत साधना में रत साधु-साध्वियों को अध्ययन सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध करवाने में आप सदा तत्पर रहते हैं इसी कारण आपको देखने मात्र से साधु-साध्वियों के हृदय में पितृवत् भाव उमड़ आते हैं। आज आप जिस मुकाम पर खड़े होकर सम्पूर्ण जैन