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दादाजी का मन्दिर-माहीगञ्ज । पाषाण के चरण पर।
[ 1027] संवत् १७७७ रा वर्षे जेठ मासे शुक्ल पदे १७ तिथौ बुधवासरे श्री चन्द्रकुलाधिप । वृहत् श्री खरतरगछे जंगम युगप्रधान जहारक। श्री १०० श्री जिनदत्त सरिजी श्री १०० श्री जिनकुशल सूरीणां चरण स्थापितं ।। श्री रत्नसुन्दरजी गणि उपदेशात् साह श्री गड़ बुधसिंहजी तत्पुत्र । बाबू श्री प्रतापसिंहजी कारापितं ॥ श्रीसङ्घ हितार्थम् । जङ्गमयुगप्रधान जहारक श्री जिनहर्ष सूरिजी विजय राज्ये श्रीरस्तु ॥ श्रीकल्याणमस्तुः ॥
उदयपुर (मेवाड़) श्री शीतलानाथस्वामी का मन्दिर ।
[1028] * ॐ ॥ संवत् १६५३ वर्षे कार्तिक बदि ॥ सोमवासरे उदयपुर राणा श्री जगत्सिंह राज्ये तपागले श्री जिन मन्दिरे श्री शीतलजिन विबं पित्तलमय परिकर का रितः पासपुर वास्तव्य वृद्धशाखा प्राग्वाट ज्ञातीय पं० कान्हा सुत पंछ केसर नार्या केसर दे तत्सुत पं० दामोदर खकुटुम्बयुतैः ॥ जहारक श्री विजयदेव सूरीश्वर तत्पप्रनाकर आचार्य श्री विजयसिंह सूरीश्वर निदेशात् सकलसङ्घयुतै पएिकत श्री मतिचन्ड गणिनिः वासदेपः श्री सकलसङ्घस्य कल्याणं भूयात् ॥
धातु की चौविशी पर।
[1029] संवत् १५ वर्षे जे० व० ११ प्राग्वाट दो० सूरा नाग पोमी सुत दो० आसाकेन जा रूपिणि सुत राउल माणिकलाल जोगादि कुटुम्बयुतेन स्वज्रात गोला स्वसुत सारङ्ग श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ चतुर्विशति पट्टः का प्रण तपागबनायक जट्टारक प्रजु श्री सोमसुन्दर सूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥ वीसलनगर वास्तव्यः ॥
* मूल विय श्वेत पाषाण का प्राचीन है, लेख मालूम नहीं होता; पश्चात् धातु की परकर बनी है उस पर यह लेख है।
"Aho Shrut Gyanam"