Book Title: Jain Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar
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(५०३) गुडली-मेवाड़।
जैन मंदिर। पंचतीधियों पर।
{2107] सं० १५४५ वर्षे वैशाख वदि ५ उपकेश झातीय सा० करमा ना साहु पुत्र षीदा जात लखमा दे पु० गोदा उजल जाए वडी पु० जेसा मेघा केमा हरमा सहितेन जिदम निमित्तं श्री वासुपूज्य विंवं कारित प्रतिष्टितं वृहम नद्वारक श्री धनप्रन मूरिभिः ।।
2108] सं० १५५ए वर्षे वैशाख सुदि १५ शनौ उपकेश ज्ञातीय मानींग ज्ञा नंदि पु० देपा. केन पितृयुतेन श्री वासुपूज्य विधं कारितं प्रतिष्ठितं ब्रह्माण गछे द्रुमतिलक सूरि पट्टे श्री जदयाणंद सूरिनिः॥
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खारची-मारवाड़।
जैन मंदिर। पंचतीर्थी पर।
[2109] ११३ वर्षे ज्येष्ठ वाद ७ . . . . . . धर्मनाथ विष कारितं प्रतिष्ठितं मर गछे श्री शांति सूरिनिः हाविल ग्रामे ॥
"Aho Shrut Gyanam"

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