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(१०) (२) बं कारितं ओसवंशे उगड गो । प्रतापसिंहेन । प्र । वृ । न । खरतर ग. (३) छाधिराज श्री जिनचंद्र सूरि . . . . . . . . स्थितैः ।
[ 1823] ॥ श्री गोडी पार्श्व जिन बिंब ॥ (3)॥ संवत् १७३२ वर्षे ज्येष्ट शुक्ल ११ । चंचे जीपोंछाररूपा। विजय गछे। जट्टारक श्री पूज्य श्री जिन शांतिसागर सूरिनिः प्रतिष्ठितं स्थापितं च ॥
पाषाण के चरणों पर।
[1824] (१) संवत् १७० मिति माघ शुक्ल १७ दशम्यां तिथौ श्री गौडी पाश्वनाथ चैत्ये विंशति
जिनेश्वराणां घरण न्यासाः श्री बाबूचर नगर वास्त (२) व्य फुगड गोत्रीय साह श्री प्रताप सिंघेन कारिताः प्रतिष्ठिताश्च । श्री महत्खरतर
गन्छेशाः जंग(३) म युग प्रधान जट्टारकाः श्री जिन हर्ष सूरीश्वराणामुपदेशात् उपाध्याय पद शा
जिता । श्री क्षमाकल्याण गणीनां शि(४) प्य प्राज्ञ ज्ञानानंदन पं। पानंदविमस पं। सुमति शेखर सहितेनेति । श्रेयार्थे ।
सम्यक्त बृष्ट्यर्थ च ॥ ॥ श्री अजितनाथजी ५ ॥ श्री संजवनाथजी ३ ॥श्री अभिनंदन नाथ जी ४ ॥ श्री सुमति नाथ जी ५॥ श्री पद्मप्रन जी ६॥ श्री सुपार्श्वनाथ जी ७ ॥ श्री चंपनजी ॥ श्री सुविधिनाथ जी ॥ ॥ श्री शीतल नाथ जी १० ॥ श्री श्रेयांस नाथ जी ११ ॥ श्री विमल नाथ जी १३ ॥ श्री अनंत नाथ जी १४ ॥ श्री धर्म नाथ जी १५ ॥ श्री शांति नाथ जी १६ ॥ श्री कुंथुनाथ जी १७ ॥ श्री अरनाथ जी १७॥ श्री मलिनाथ जी रए ॥ श्री मुनिसुव्रत नाथ जी २० ॥ श्री नमिनाथ जी २१॥ श्री पार्श्वनाथ जी ३ ॥
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