Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 10
________________ भाष्य साहित्य में भी, नियुक्ति की भांति संक्षिप्त शैली में अनेक कथानक और दृष्टान्तो द्वारा विषय का प्रतिपादन किया गया है। भाष्य साहित्य का सृजन जैन सन्यासियों द्वारा भाष्य साहित्य को अन्तिम रूप देने के पूर्व की गई। भाष्य साहित्य की प्रमुख रचनाओं में संघदास गणी क्षमाश्रमण रचित निशीथभाष्य, कल्प भाष्य और व्यवहार भाष्य आदि है। धृर्तो के मनोरंजक आख्यान भी इस साहित्य ये उपलब्ध है। भाष्य युगीन कथायें, मुख्यतः, शैली की विशेषता, विविधता एवं नवीनता आदि कारणों से अपना एक अलग स्वरूप प्रतिबिंबित करती है। सामान्यत: साहित्य का भाष्य युग विकास की उस स्थिति का सूचक है जब रचना की प्रक्रिया में मौलिकता को जन्म देने वाली प्रवृतियां विकसित होने लगती है। आगमों पर आधारित व्याख्या साहित्य में चूर्णियों का महत्वपूर्ण स्थान है। वे चूर्णियां गद्य में लिखी गई है। जैन धर्म को विस्तार से प्रतिपादित करने के लिये सम्भवत: पद्य रचित नियुक्ति एवं भाष्य साहित्य में अधिक गुजाइश नहीं थी।'' चूर्णियों में प्राकृत की अनेक लौकिक एवं धार्मिक कथायें समाहित है। इन चूर्णियों की भाषा केवल प्राकृत न होकर संस्कृत मिश्रित प्राकृत है। परिणामास्वरूप, सुम्राहय होने के कारण चूर्णी साहित्य, का क्षेत्र नियुक्ति एवं भाष्य की अपेक्षा अधिक विस्तृत था चूर्णियों में विशेषत: निशीथ की विशेष चूर्णी एवं आवश्यक चूर्णी में जैन पुरातत्व से सम्बन्धित सामग्री एवं जैनाचार्यों की जनसम्पर्क प्रवृति एवं उनकी व्यापक अध्ययनशीलता पर प्रकाश पड़ता है। जिनदासमणि महत्तर द्वारा रचित इन चूणियों के सृजन का समय छठी शताब्दी ईसवी-सन् के आसपास माना जाता है ।12 आगम साहित्य को समझने में टीकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। नियुक्ति, भाप्य और चूर्णियों की भाँति आगमों पर भी विस्तृत टीकायं लिखी गयी हैं। यद्यपि टीकाओं की भाषा संस्कृत है फिर भी टीकाओं का कथा सम्बन्धी अंश प्राकृत में भी उद्धृत है। हरिभद्रसूरि जिनका समय लगभग 705-775 ईसवी सन् है प्रमुखत: टीकाकारों में उल्लेखनीय है। हरिभद्रसूरी ने आवश्यक देशवैकालिक बन्दी, और अनुयोग द्वार पर टीकायें लिखी। तत्पश्चात् शीलांकसूरि

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