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श्रमण कथाएँ १८५
उत्तराध्ययननियुक्ति में इन सभी पात्रों के पूर्वभव, वर्तमान भव और उनकी उत्पत्ति तथा निर्वाणप्राप्ति का संक्षिप्त इतिवृत्त प्रस्तुत किया है । हम विस्तार में न जाकर संक्षिप्त में यह बतायेंगे कि पुरोहित के दो पुत्र दीक्षा के लिए तैयार होते हैं । उनके माता-पिता उन्हें गृहस्थाश्रम में रहकर ब्राह्मण कृत्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। पर जहाँ वैराग्य का पयोधि उछालें मार रहा हो, वहाँ वह व्यक्ति संसार में कैसे रह सकता है ? वे दोनों पुत्र माता-पिता को विविध रूपकों एवं अकाट्य तर्कों से संसार को असारता बताते हैं । पिता ब्राह्मण-संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर अपने तर्क प्रस्तुत करता है तो दोनों पुत्र श्रमण संस्कृति का नेतृत्व करते हुए अपनी दलीलें रखते हैं । अन्त में भृगुपुरोहित को संसार की असारता और क्षणभंगुरता पर विश्वास पैदा हो जाता है, वह अपनी पत्नी को समझाता है । उसकी पत्नी भी दीक्षा के लिए तैयार हो गई, पुरोहित का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था । राजा का मन उसकी विराट् सम्पत्ति को लेने के लिए ललचा रहा था । रानी कमलावती इषुकार राजा को कहती है-- राजन् ! वमन को खाने वाले पुरुष की प्रशंसा नहीं होती । आप ब्राह्मण के द्वारा परित्यक्त धन को ग्रहण करना चाहते हैं । वह वमन को पीने के सदृश है । रानी ने भोगों की असारता पर प्रकाश डाला । राजा का मन विरक्ति से भर गया । राजा और रानी दोनों भी प्रव्रजित हो जाते हैं ।
बौद्ध साहित्य में
प्रस्तुत कथानक की तरह बौद्ध साहित्य में भी यह कथा कुछ रूपान्तर के साथ आई है । वहाँ भी यह कथा बहुत ही विस्तार के साथ दी गई है । बौद्ध कथावस्तु में मुख्य पात्र आठ हैं, वे इस प्रकार हैं
(१) राजा एसुकारी (३) पुरोहित (५) पहला पुत्र हस्तिपाल (७) तीसरा पुत्र गोपाल
(२) पटरानी
(४) पुरोहित की पत्नी
(६) दूसरा पुत्र अश्वपाल (८) चौथा पुत्र अजपाल ।
वृक्ष
न्यग्रोध के अधिष्ठायक देव के वरदान से पुरोहित के चार पुत्र उत्पन्न हुए। वे चारों प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहते हैं । पिता उन चारों की
१ उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा ३६३ से ३७३.
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