Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 392
________________ ३७६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा डॉ० हर्मन याकोबो ने स्वीकारते हुए कहा था-'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा, भारतीय साहित्य का पहिला और विशद रूपक-ग्रन्थ है। लाखों की संख्या में बिकने वाली, मिस्टर बनियन की अंग्रेजो रचना 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' पढ़े-लिखे अंग्रेजों में काफी प्रसिद्ध रही है। किन्तु, इस अंग्रेजी रचना में, सुप्रसिद्ध फांसीसी लेखक देग्य इलेविले की कृति-'दी पिलग्रिमेज ऑफ मैन' का बहुत कुछ अनुसरण/अनुकरण किया गया, यह तथ्य, दी इंग्लिश लिट्रेचर' के लेखक द्वय ने स्पष्ट करते हुए बतलाया कि 'पिलगिम्स प्रोग्रेस' नामक अंग्रेजो रचना (सन् १६७६) फ्रान्सीसी-कृति 'दी पिलग्रिमेज ऑफ मैन' से काफी अर्वाचीन है। ये प्रमाण बोलते हैं-महर्षि सिद्धर्षि की 'उपमिति-भव-प्रपंच कथा' मात्र भारतीय साहित्य की ही नहीं, वरन्, विश्व-साहित्य की भी, सर्वप्रथम रूपक रचना है। इन कथनों की सापेक्षता में, हम निस्संकोच यह कह सकते हैं'उपमिति-भव-प्रपंच कथा' एक ऐसी संस्कृत रचना है, जो, रूपक शैली में लिखी होने पर भी, संस्कृत-वाङमय की गौरवमयी काव्य-परम्परा, और सुविशाल आख्यान/कथा साहित्य श्रेणी की, एक गरिमा मण्डित कृति मानी जा सकती है। सिद्धषि के इस महाकथा-ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता यह है कि पूरा ग्रन्थ रूपकमय है। आदि से लेकर अन्त तक, एक ही नायक के जन्मजन्मान्तरों का कथा-विवेचन, इस तरह से किया गया है कि धर्म और दर्शन के विशाल-वाङमय में जो-जो भी प्रमुख जीव-योनियां/गतियाँ बतलाई गई हैं, उन सबकी स्वरूप-स्थिति व्यापक-रूप में बतलाने के साथसाथ यह भी स्पष्ट होता गया है कि किन-किन कर्मों/भावों से, जीवात्मा को किस-किस यानि/गति में भटकना पड़ता है। और, किस तरह की मनोवत्तियाँ/भावनाएँ उन-उन स्थितियों से उसे उबारने में सक्षम/सम्बल बन पाती हैं। आशय यह है कि सिद्धषि की सम्पूर्ण कथा, दो समानान्तर धरातलों पर, साथ-साथ विकास विस्तार को प्राप्त होती गई है। ये दोनों धरातल हैं-सांसारिकता/भौतिकता और अध्यात्म । सांसारिक/भौतिक धरातल पर तो पाठक को सिर्फ यही समझ में आ पाता है कि अनुसुन्दर चक्रवर्ती का जीवात्मा, किस-किस तरह की परिस्थितियों में से गुजरता हुआ, कथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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