Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 432
________________ ४१६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा इस प्रकार जैन दर्शन ने मुक्त जीव का जो स्वरूप चित्रित किया है कि वह किस प्रकार बन्ध से मुक्त होता है ? इस सम्बन्ध में आचार्य सिद्धर्षि गणी ने अपनी 'उपमिति-भव-प्रपंच कथा' में मुक्त जीव के स्वरूप का भी सांगोपांग निरूपण किया है । जीव, जगत् और परमात्मा की गुरु-गम्भीर ग्रन्थियाँ कथा के द्वारा इस प्रकार सुलझाई गई हैं कि पाठक पढ़ते-पढ़ते आनन्द से झूमने लगता है । उस दार्शनिक और नीरस विषय को लेखक ने अपनी महान् प्रतिभा से सरस, सरल और सुबोध बना दिया है । वस्तुतः आचार्य सिद्धर्षि की प्रतिभा अद्वितीय है, अनुपम है। उनकी प्रताप पूर्ण प्रतिभा को यह ग्रन्थ रत्न सदा सर्वदा उजागर करता रहेगा। प्रस्तुत 'उपमिति भव-प्रपंच' महाकथा जैन कथा साहित्य की शैली में ही क्या, विश्व कथा साहित्य की शैली में भी एक नया प्रयोग; नया मोड कहा जा सकता है। प्राचीन आगम कालीन कथाओं में प्रायः जीवन वृत्त या घटनाएं प्रधान रही हैं। महापुरुषों का जीवन चरित्र उनका वण्र्य विषय रहा है, फिर कुछ रूपक व उपनयों का प्रयोग प्रारम्भ होता है ज्ञाता सूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र में अनेक प्रकार के उपनय, रूपक दृष्टान्त मिलते हैं। इसके बाद का कथा साहित्य पौराणिकता की धारा में बह जाता है जिसमें लम्बे लम्बे कथानक, अनेक कथापात्र व चरित्रों में विविध गुणों का विधान होता है । इस कथा शैली में एक नया मोड आता है-उपमिति भव प्रपंच कथा के प्रारम्भीसे । इसकी शैली बिलकुल स्वन्तत्र और लाक्षणिक है, दार्शनिकता आध्यत्मिकता,का पुट होते हुए भी रोचकता और जीवनस्पशिता भी भरपूर हैं। अपनी अद्भुत लाक्षणिक शैली के कारण यह ग्रन्थ जैनकथा साहित्य को एक समग्रता और विविधता के साथ प्रस्तुत करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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