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आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य
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पाया था । किन्तु आज, 'फेबल्स' का स्पष्ट स्वरूप सामने आ चुका है । 1 तदनुसार, 'नीतिकथा' के अन्तर्गत वे ही कथाएँ ग्रहण की जा सकेंगी, जिनमें अधिकतर पात्र मानवेतर क्षुद्र प्राणी हों, और, कहीं-कहीं, मानवोय पात्र भी आये हों । किन्तु, प्रमुख रूप में नहीं, बल्कि, गौण रूप में हो ।
पशु-पक्षियों के माध्यम से व्यावहारिक उपदेश देने की परम्परा, भारत में बहुत प्राचीन है । ऋग्वेद में 'मनु और मत्स्य' की कथा आई है । छान्दोग्योपनिषद् में दृष्टान्त के रूप में उद्गीथ श्वान का आख्यान है । रामायण में कुछ नीति कथाएँ वर्णित हैं और कुछ उपमाओं द्वारा संकेतित । महाभारत में भी विदुर के श्रीमुख से अनेकों उपदेशप्रद नीतिकथाएँ कहीं गईं हैं । ई० पू० तीसरी शताब्दी के भारहूत स्तूप पर भी अनेकों नीति कथाएँ उट्टंकित की गई हैं । 2 पातंजलि के महाभाष्य में 'अजाकपाणीय' काकतालीय' आदि लोकोक्तियों का, और 'सर्पनकुल' 'काकउलूक' की जन्मजात शत्रुता का उल्लेख आया है ।
नीति कथा का स्पष्ट रूप 'पंचतन्त्र' में मिलता है । विष्णु शर्मा द्वारा रचित यह ग्रन्थ, नीति- साहित्य का सर्व प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है | किन्तु, मौलिक 'पंचतन्त्र' आज उपलब्ध नहीं है । वैसे, पंचतन्त्र के आजकल आठ संस्करण उपलब्ध हैं, जिनमें, थोड़ा-बहुत हेर-फेर अवश्य है । इन सारे संस्करणों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर डॉ० एजर्टन ने एक प्रामाणिक संस्करण प्रस्तुत किया है |
'पंचतन्त्र' को रचना कब हुई ? निश्चय के साथ, आज कुछ भी नहीं कहा जा सकता । बादशाह खुसरू अन् शेरखां (५३१ - ५७६ ) के शासनकाल में, इसका पहली बार अनुवाद पहलवी भाषा में हुआ था । परन्तु, आज यह अनुवाद भी अप्राप्य हो गया है। इस अनुवाद के आसुरी ( Syriac ) और अरबी रूपान्तर अवश्य मिलते हैं। जिनके नाम क्रमशः 'कलि लग तथा दम नग' (५७० ई० ) और 'कलीलह तथा दिमनह' (७५० ई०) रखे गये थे । इन नामों से यह अवश्य ज्ञात होता है कि पहलवी भाषा में अनुदित ग्रन्थ का नाम भी पंचतन्त्र के प्रथम तन्त्र में वर्णित दोनों शृगालों के
१ Oxford Junior Encyclopaedia : 'Vol. I. 'Mankind' Oxford, 1955 p. 167
२ मैकडानल : इन्डियाज पास्ट - पृष्ठ ११७ ।
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