Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 373
________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३५७ आर्यशूर रचित 'जातकमाला' में भी बौद्धों की नीतिकथाओं का संकलन है। जैन सिद्धान्तों की विवेचना/व्याख्या के लिए अनेकों नीतिकथाओं की रचना हुई है । प्राकृत साहित्य में इन कथाओं की भरमार है । इनका संस्कृत रूपान्तर, बहुत बाद की वस्तु है। 'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा' को भी संस्कृत साहित्य के नीतिकथा ग्रन्थों में महत्वपूर्ण सम्मान मिला है। १५वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में लिखी गई जिनकीर्ति की 'चम्पक श्रेष्ठ कथानक' तथा 'पाल-गोपाल कथानक' रचनाएँ, नीति-कथाग्रंथों में रोचक मानी गई हैं । प्रथम रचना में, भाग्य को जीतने के लिए रावण के निष्फल प्रयास का वर्णन है। जबकि दूसरी रचना में, एक ऐसे युवक का कथानक है, जो किसी मनचली स्त्री के चंगुल में फंसने से इनकार कर देता है। फलस्वरूप वह स्त्री, उस युवक पर दोषारोपण करने लगती है । त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित के 'परिशिष्ट पर्व' को हेमचन्द्र (१०८८-११७२) ने, नीति-कथाग्रन्थ के रूप में रचा। इसमें, जैनसन्तों के मनोहारी जीवनवृत्तों की कथाएं समाविष्ट हैं । 'सम्यनत्व कौमुदी' में अहसास और उसकी आठ पत्नियों के मुख से सम्यक् धर्म को प्राप्ति का प्रतिपादन कराया गया है । जिसे, एक राजा और चोर भी सुनते हैं। इस ग्रन्थ की पद्धति, एक ही कथा के अन्तर्गत अनेकों कथाओं का समावेश करने की परम्परा पर आधारित हैं। इन तमाम सन्दर्भो को लक्ष्य करके कहा जा सकता है कि 'नीतिकथा' का प्रमुख लक्ष्य है-'सरल और मनोरंजक पद्धति से धर्म, अर्थ और काम की चर्चाओं के साथ-साथ सदाचार, सद्व्यवहार और राजनीति के परिपक्व ज्ञान को मानव-मन पर इस तरह अंकित कर देना कि वह मायावी और वञ्चकों के जाल में उलझने न पाए।' ___ लोक-कथा साहित्य का भी लक्ष्य स्पष्ट है-'लोक-मनरजन' । इनके पात्र, पशु-पक्षो न होकर, मात्र मानव ही होते हैं । गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' लोककथाओं का प्राचीनतम संग्रह-ग्रन्थ है । 'अपने समय की प्रचलित लोककथाओं को संकलित करके गुणाढ्य ने 'बृहत्कथा' की रचना की' ऐसी कुछ विद्वानो की धारणा है। मूल 'बृहकथा' आज उपलब्ध नहीं है । इसलिए, इसके आकार आदि के सम्बन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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