Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 387
________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३७१ सज्जनों का भाग्य मन्द पड़ गया है । कुलीन स्त्रियाँ मर्यादायें तोड़ रहो हैं । युवतियाँ, अपने पति से विद्रोह करने लगी हैं और गृहस्थ युवक, परस्त्री लम्पट हो गये हैं। पिता, अपने नालायक पुत्रों का जीवित अवस्था में ही श्राद्ध करना चाहता है। चोर और हिंसक, जंगलों की प्रत्येक दिशा में अपना डेरा डाले पड़े हैं। यही सारी दुर्दशाएँ तो आज के समाज में ज्यों की त्यों मौजूद हैं। ____कवि कर्णपूर द्वारा रचित-'चैतन्य चन्द्रोदय' नाटक भी रूपक शैली का है। इसकी रचना, जगन्नाथ (उड़ीसा) क्षेत्र के अधिपति प्रतापरुद्र की आज्ञा से १५७० ई० में की गई थी। उस समय, कवि की उम्र २५ वर्ष थी। इसमें, महाप्रभु चैतन्य के दार्शनिक दृष्टिकोणों और उनकी लीलाओं का अच्छा समावेश किया गया है। अमूर्त और मूर्त, दोनों प्रकार के पात्रों का सम्मिश्रण, इस नाटक में किया गया है। नाटककार को चैतन्यदेव ने 'कर्णपूर' की उपाधि प्रदान को थी। इसका जन्म परमानन्ददास था। और, इनके पिता शिवानन्द सेन, चैतन्यदेव के पार्षद थे। कवि कर्णपूर का जन्म १५०४ ई० में हुआ था। नाटक के मूर्त पात्रों में चैतन्य और उनके शिष्य हैं। नाटक के उल्लेख के अनुसार, इसकी रचना १४०७ शक सं० में हुई थी। गोकुलनाथ ने 'अमृतोदय' की रचना १६वीं शताब्दी में की थी। इसमें सांसारिक-बन्धनों एवं क्लेशों का चित्रण करके, उनसे मुक्ति पाने का उपाय बतलाया गया है। आन्वीक्षिकी, मीमांसा, श्रुति आदि को, इसमें पात्रों के रूप में प्रस्तुत करके, न्याय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। रत्नखेट के श्रीनिवास दीक्षित (१५०७ ई०) का 'भावना पुरुषोत्तम' नाटक भी उल्लेखनीय है । वादिचन्द्रसूरि का 'ज्ञान-सूर्योदय' नाटक भी, प्रसिद्ध १ धर्मविजय (नाटक), द्वितीय अङ्क। २ संस्कृत साहित्य का इतिहास : पं० श्री बलदेव उपाध्याय, पृष्ठ-५६४ ३ शाके चतुर्दशशते रविवाजियुक्ते, गौरो हरिर्धरणिमण्डलराविरासीत् । तस्मिंश्चतुनुवतिभाजि तदीयलीला, ग्रन्थोऽयमाविर्भवत्कतमस्य वक्त्रात् ॥ -चैतन्य-चन्द्रोदय पृष्ठ सं० २०, १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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