Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 11 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 5
________________ अङ्क ११] ब्राह्मणों की उत्पत्ति। ४७१ arwarrormarrrrrrrowwww है कि, जैनब्राह्मण बनानेवालेको इस बातका छहा अधिकार प्रायश्चित्तका है, जिसका वर्णन निश्चय था कि मिथ्यात्वी ब्राह्मण तो जातिके पहले हो चुका है । सातवाँ अधिकार अवध्यत्व ब्राह्मण हैं, उनमें गुण हों वा न हों वे तो अवश्य है, अर्थात् जैनी ब्राह्मणको चाहिए कि वह अपना पूजे ही जावेंगे (इस विषयमें देखो प्रथम लेख, यह अधिकार जताता रहे कि मैं ब्राम्हण हूँ, जिससे मालूम हो जायगा कि आदिपुराणमें बार इस कारण मुझको किसी प्रकार मारने वा तिरबार यह बात कही गई है कि गुणहीन होने पर स्कार करनेका किसीको अधिकार नहीं है। भी ये मिथ्यात्वी ब्राह्मण केवल अपनी जातिके यदि वह ऐसा अधिकार पुष्ट न करता रहेगा, तो घमंडसे अपनेको पुजवाते हैं), परन्तु उसको सब लोग उसे मारने लगेंगे और ऐसा होनेसे जैननवीन बनाये हुए जैन ब्राह्मणोंकी बाबत पूरा धर्मकी भी प्रमाणता जाती रहेगी । वैदिक मतके . भय था कि यदि ये लोग गुण प्राप्त न करेंगे तो ग्रन्थोंमें लिखा है कि ब्राह्मण अवध्य है, इससे इनको कोई भी न मानेगा और तब यह सारा ब्राह्मणोंको कोई नहीं मारता था। यही अधिही खेल बिगड़ जावेगा। ___ कार जैन ब्राह्मणों को दिये जानेकी यह कोशिश __ पाँचवाँ सृष्टि अधिकार है, अर्थात् जिस प्रकार की गई थी। शोककी बात है कि, ब्राह्मणोंका अति जैनधर्मकी उत्पत्ति वर्णन की गई है, उसकी रक्षा प्राबल्य होनेके कारण ब्राह्मणोंने जो यह महा-: करना । अभिप्राय यह कि जैन ब्राह्मणोंकी इस जुल्मका अधिकार प्राप्त कर लिया था कि वे नई सृष्टिको नये प्रमाणोंसे पुष्ट करते रहना चाहिए, कैसा ही दोष करें और कितना ही किसीका नुकअर्थात् यह सिद्ध करते रहना चाहिए कि युगकी सान कर दें; परन्तु उनको कोई भी न मार सके। आदिमें तो सब ब्राह्मण जैनी ही बनाये गये और न उनका तिरस्कार कर सके, वही अधिथे; परन्तु पंचमकालमें ये लोग भ्रष्ट होकर मि- कार प्राप्त करनेकी शिक्षा जैन ब्राह्मणोंको दी 'थ्यात्वी हो गये हैं । इस कारण इनमेंसे जो कोई गई है। फिर जैनी बनता है वह अपने प्राचीन सत्य- आठवाँ अधिकार अदंड्यत्व है, अर्थात् राजा मार्गको ही ग्रहण करता है । यहाँ भी डर दि- भी उनको दंड न दे सके । जैनब्राह्मणको खाया है कि यदि वे ऐसा न करते रहेंगे तो शिक्षा दी गई है कि इस अधिकारको भी वह मिथ्यादृष्टि लोग राजा प्रजा सबको बहका लेंगे, अपने वास्ते सिद्ध करता रहे । यह अन्याय्य अर्थात् वे लोग राजाको और प्रजाको समझा देंगे अधिकार भी ब्राह्मणोंने अपनी चलतीमें प्राप्त कर कि जो लोग परम्परासे सन्तान प्रति सन्तान लिया था कि उनसे चाहे जैसा दोष हो जाय, ब्राह्मण-चले आते हैं और वेदको मानते आ रहे परन्तु राजा भी उनको दंड न दे सके । शोककी हैं वे ही ब्राह्मण हैं और वे ही पूजनेके योग्य हैं, बात है कि, इस अधिकारके प्राप्त करनेके लिए ये नवीन बने हुए जैन ब्राह्मण न ब्राह्मण हो सकते भी जैन ब्राह्मणोंको शिक्षा दी गई है । हैं और न पूजने के योग्य हैं । यदि जैनब्राह्मण नवाँ अधिकार मान्यता है, अर्थात् सब लोग इन राजाओंको उपदेश देकर अपने धर्मपर दृढ़ न जैनी ब्राह्मणों को मानें और पूजें । जैनी ब्राह्मरक्खेंगे तो राजा लोग भी अन्य मंतकी धर्म- णोंको समझाया गया है कि उनको बड़ी कोशिशसृष्टिको मानने लगेंगे और तब जैनब्राह्मणोंका के साथ इस मान्यताको प्राप्त करना चाहिए। कुछ भी ऐश्वर्य न रहेगा और तब जैन लोग यदि लोग उनका आदरसत्कार नहीं करेंगे तो भी अन्य मतको मानने लगेंगे। वे अपने पदसे गिर जावेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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