Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 11
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 43
________________ ५०९ अङ्क ११] अलंकारोंसे उत्पन्न हुए देवी-देवता। ३. पर्व ८ में एक पुरुषके विषयमें लिखा है हमें भय है कि ब्रह्मचारीजी अब कहीं सतकि, उसने एक दिन राजाके कुठारियोंसे जबर्दस्ती युगके मद्यको भी पवित्र और जीवराशिरहित घी चावल आदि छीनकर वेश्याओंको दे सिद्ध करनेका प्रयत्न न करने लगे। दिये-" बलादादाय वेश्याभ्यः संप्रायच्छत दुर्मदी' (श्लो० २२५ )। यहाँ वेश्या शब्दका प्रयोग हुआ है। अलंकारोंसे उत्पन्न हुए ।' ४. पर्व ६, श्लोक १८१ में महापूत चैत्या' देवी-देवता। लयकी दीवारोंको वेश्याओंकी उपमा दी वर्णसांकर्यसम्भूतचित्रकमान्विता अपि । (ले०, श्रीयुत बाबू सूरजभानजी वकील ।). यद्भित्तयो जगचित्तहारिण्यो गणिका इव ॥ इस देशके साहित्यमें अलङ्कारोंकी भरमार अर्थात् उस मन्दिरकी दीवालें ठीक वेश्या- है। यहाँके कवि और आचार्य सदासे ही अलओंके समान थीं। जिस तरह वेश्यायें वर्णसंक- ड्रार शास्त्रके भक्त रहे हैं। उन्होंने साधारणसे रतासे उत्पन्न हुए विचित्र पापकर्मोकी करने- साधारण बात कहनेमें भी अलंकारोंका प्रयोग वाली होकर भी संसारकी चित्त हरण करती हैं, किया है । इन अलंकारोंने जहाँ यहाँके साहित्यउसी प्रकार वे दीवालें भी अनेक वर्षों से बनाये की शोभाको बढ़ाया, वहाँ एक हानि भी पहुँचाई हुए चित्रोंसे जगत्का चित्त हरण करती थीं । है। इनकी कृपासे प्रकृतिके अनेक दृश्य वास्तविक इसमें वेश्याओंको जो — वर्णसांकर्यसंभूतचित्र- देवी देवता बन गये हैं और सर्व साधारणमें । कर्मान्विता' विशेषण दिया है, वह बतलाता माने पूजे जाने लगे हैं। भारतकी सभ्यता और . है कि, वेश्यायें अनेक वर्णके लोगोंसे सम्बन्ध साहित्यका प्राचीन इतिहास लिखनेवाले विद्वारखती थीं। नोंने इस बातको भली भाँति सिद्ध कर दिया ५. पर्व ४ के ७३ वें श्लोको गन्धला है कि हिन्दू पुराणों के अनेक देवी देवता और देशकी नदियोंको वेश्याओंकी उपमा दी है और उनकी कथायें वेदोंके आलंकारिक वर्णनोंसे गढी उसमें उन्हें वेश्याओंके समान सर्वभोग्या ( सबके गई हैं, जैसा कि ऋग्वेदके सूर्य और उषाके द्वारा भोगी जानेवाली ) बतलाया है:- आलंकारिक वर्णनसे सूर्य देवता और उसकी पुत्री विपंका ग्राहवात्यश्च स्वच्छाः कुटिलवृत्तयः। उषाकी अद्भुत कथाका गढ़ा जाना प्रसिद्ध है। अलभ्याः सर्वभोग्याश्च विचित्रा यत्र निम्नगाः॥ हम देखते हैं कि जैनधर्मके कथाग्रन्थोंमें भी इन प्रमाणोंसे अच्छी तरह सिद्ध होता है कि अलङ्कारोंने वास्तविकताका रूप धारण कर आदिपुराणके कर्ता वेश्याओं या गणिकाओंको लिया है और बहुतसे देवी देवताओंके अस्तित्वब्रह्मचारिणी या शीलवती नहीं समझते थे. जैसा को जैनधर्मके श्रद्धालुओंके हृदयमें स्थापित कि ब्रह्मचारीजी समझते हैं । अतएव अब ब्रह्मचा- कर दिया है। रीजीको लोगोंकी श्रद्धा बनाये रखनेके लिए श्री (शोभा ), ह्री ( लज्जा), धृति (धीरज), और अपनी श्रद्धालुता प्रकट करनेके लिए कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ( विभूति ) ये छः कोई दूसरा प्रयत्न करना चाहिए। ___ बातें मनुष्यकी बड़ाईकी हैं और ये बड़े मनु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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