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भरत भुजदण्ड बहुत ही लम्बे थे और उन पर निवास करनेवाली लक्ष्मी उन्हें कुलपर्वत समझकर बहुत सन्तुष्ट रहती थी । - ' बाहुदण्डस्य...। कुलशैलास्थया नूनं तेने लक्ष्मीः परां धृतिं ।' ( १५ - १९६ ) । बाहुबलिकी गहरी नाभि लक्ष्मीके कुलाचल पर्वतस्थ तालाव के समान जान पड़ती थी । - ' कुलाद्रिख पद्मायाः सेवनीयं महत्सरः । ' ( १६-१८ ) ।
जैनहितैषी -
इस प्रकार सचमुचकी देवियाँ और उनका निवासस्थान स्थापित होकर फिर उनके कामोंका भी वर्णन होने लगा । जैसे कि भगवान् के अभिकके समय श्रीआदि देवियाँ पद्मादि सरोका जल लाई थीं - ' श्रीदेवीभिर्यदानीतं पद्मादिसरसां पयः । ' ( १६-२१२ ) चक्राभिषेक क्रियाके वर्णनमें भी लिखा है कि श्री आदि देवियाँ अपने अपने नियोगके अनुसार आकर उनकी सेवा करती हैं । इन्हीं छः देवि "यॉने स्वर्ग लोकसे लाये हुए पवित्र पदार्थोंद्वारा पहले जिन माताका गर्भशोधन किया और फिर वे अनेक प्रकार से उनकी सेवा करने लगीं ।
इस प्रकार न जाने कितने देवी देवताओंका प्रादुर्भाव संस्कृत-साहित्य में इन अलंकारोंकी ही • बदौलत हो गया है और जैन विद्वानोंके काव्यग्रन्थों के द्वारा वे सब देवी-देवता जैनधर्ममें भी आघुसे हैं, तथा माने पूजे जाने लगे हैं । इस कारण वस्तुस्वभावानुसार सत्य जैनधर्मके ढूँढ़नेबालोंको विचारशक्तिसे काम लेने और परीक्षाप्रधानी बनने की बहुत बड़ी आवश्यकता है ।
पुस्तक- परिचय |
स्वराज्यकी योग्यता । मूल लेखक, बाबू रामानन्द चट्टोपाध्याय एम. ए., अनुवादक, ० नन्दकिशोर द्विवेदी बी. ए. और प्रकाशक, पं० उदयलाल काशलीवाल, व्यवस्थापक हिन्दी गौरव ग्रन्थमाला, हीराबाग, बम्बई | पृष्ठ २२० ।
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[ भाग १३
मूल्य सवा रुपया । इस समय सारे देशको स्वराज्यके अभूतपूर्व आन्दोलन से व्याप्त देखकर कुछ लोगोंने यह कहना शुरू किया है कि भारत अभी स्वराज्यके योग्य ही नहीं है । उसे स्वराज्य दिया जायगा तो अनर्थ हो जायगा । इस अपूर्व पुस्तक में ऐसे लोगों की सारी दलीलों का बड़ी योग्यतासे खण्डन किया है और भारतकी स्वराज्य की योग्यताको सिद्ध किया है । मूल पुस्तककी विद्वानोंने एक स्वरसे प्रशंसा की है । पं० उदयलालजीने बड़ा अच्छा किया, जो इस समय हिन्दी भाषाभाषियोंके लिए भी इसे सुलभ कर दिया । इस विषय के प्रेमियों को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए ।
२ सद्विचार पुस्तकमाला | जैनहितैषी के पाठकोंके सुपरिचित लेखक बाबू दयाचन्दजी गोयलीय बी. ए. ने उक्त नामकी पुस्तकमाला निकालनेका प्रारंभ किया है। इसमें आत्मोन्नति करनेवाले विचारोंकी छोटी छोटी पुस्तकें निकलती हैं । स्थायी ग्राहकों को सब पुस्तकें पौनी कीमत पर दी जाती हैं । स्थायी ग्राहक बनने की निकल चुकी हैं:फीस चार आने है । अब तक पाँच पुस्तकें
१ शान्तिमार्ग
२ आत्मरहस्य
३ जैसे चाहो वैसे बन जाओ ४ सुख और सफलता के मूल सिद्धांत ५ सुख की प्राप्तिका मार्ग ये पाँचों पुस्तकें अँगरेज के सुप्रसिद्ध आध्या त्मिक लेखक जेम्स एलनकी जुदी जुदी पाँच पुस्तकोंका अनुवाद है । अँगरेजीमें इन सब पुस्तकोंकी बड़ी ख्याति और खप है । मूलकी अपेक्षा इनका मूल्य बहुत ही कम है। विचारशील सज्ज - नोंको इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए और बाबू साहबका उत्साह बढ़ाना चाहिए। मिलनेका पता - मैनेजर, हिन्दी साहित्य भण्डार, लखनऊ ।
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