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__ जैनहितैषी
[भाग १४
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पर लक्ष्मीको सेंत मेंतमें, देने कहा न उसने, हाय ! धर्मको नहीं गवाँया, लोभ-विवश हो किसने?॥ कहा सुशीलाने तब दृढ हो, क्या लोगे कन्याका दाम, जो माँगोगे मैं देऊँगी, चाहे बिक जावे मम धाम । - किन्तु साहजी ! मेरी आर्थिक, दशा देख करके कहना, केवल लोभ-विवश मत होना, दयाविवश भी हो रहना ॥ ९॥ जो कुछ मेरे घर है उसको, सुता आपकी पावेगी,
और उसीसे जैसे तैसे, अपने काम चलावेगी। इसी लिए तुम खूब समझकर वर कन्या पर देना ध्यान, अपने स्वार्थसहित मेरे भी, कार्य पूर्ण करना मतिमान ॥१०॥ रूपचन्द बोला तब यों, भला पिघलता वह कब यों। चाहे. तुम बेंचो निज धाम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ ११ ॥ भूखों कन्या मर जावे, जली भाड़में बर जावे । चाहे मैं होऊँ वदनाम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ १२ ॥ मुझे पाँच सौ दे देना, लक्ष्मीको तुम ले लेना। छोडूंगा मैं नहीं छदाम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ १३ ॥ चाहे वर गुणवाला हो, गोरा हो, या काला हो। बूढ़ा हो, या युवक ललाम, मुझको है रूपयेसे काम ॥ १४ ॥ ऊँच नीचका भेद नहीं, किसी बातका खेद नहीं।
सबके जनक एक हैं राम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ १५॥ मेरा जीवन है कलदार, मेरा तन मन है कलदार । जपूँ उसे ही आठों याम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ १६ ॥ रुपयेवाले मानव हैं, धन-विहीन जन दानव हैं। इसमें कुछ भी नहीं कलाम, मुझको है रुपयेसे काम ॥१७॥ रुपये जब मेरे होंगे, पर भी तब मेरे होंगे। तब मैं पाऊँगा विश्राम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ १८ ॥ रुपया जब मिल जावेगा, हृदय-कमल खिल जावेगा। उसके विना हुआ हूँ क्षाम, मुझको है रुपयेसे काम ॥ १९ ॥ मुझे काम क्या झगड़ेसे ? पुण्य, पापके रगड़ेसे। जगमें कुछ भी है न हराम, मुझको है रुपयेसे काम ॥२०॥ कहा सुशीलाने सुनिए, रुपयोंमें कुछ कम करिए। मुझमें उतनी शक्ति नहीं, मेरी है बस विनय यही ॥ २१ ॥ मेरे मनके दुःख हरो, . वर कन्या पर दया करो। फिरसे कहिए बूझ विचार, जिसमें होवे बेड़ा पार ॥ २२॥ रूपचन्द तब तनक गया , , उसने बदला रंग नया । यदि सुतका करना है न्याह, “ पूर्ण करो तब मेरी चाह ॥ २३ ॥ जो मैं मुखसे कहता हूँ, .. उस पर दृढ़ हो रहता हूँ। झूठ बोलना ठीक नहीं, मैं जाता हूँ और कहीं ॥ २४ ॥
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