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अङ्क ११ ]
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माणिकचंद हीराचंदजी जे. पी. के पुस्तकालय में मौजूद है, इस गाथाका पूर्वार्ध तो ज्योंका. त्यों है परंतु उत्तरार्ध इस प्रकार से दिया है:या अवस्यजननं अरुहाईणं पयत्तेण इसके सिवाय इस आवकाचार में और भी अनेक गाथायें ऐसी पाई जाती हैं, जो दूसरे ग्रंथोंसे संग्रह की गई हैं । ऐसी हालत में विना किसी विशेष अनुसंधान के इस गाथाका मूलकर्ता वसुनन्दि आचार्यको नहीं माना जा सकता। यदि सचमुच ही यह गाथा उक्त वसुनन्दि आचार्यकी कृति हो तो 'पंचाध्यायी' का समय विक्रमकी १२ वीं शताब्दिके बादका समझा जायगा | पंचाध्यायीका समय निर्णय करने और उसके कर्ताका पता लगाने के लिए उक्त गाथाके मूलकर्ता और उनके उस ग्रंथ की खोज लगाने की बहुत बड़ी जरूरत है । क्यों कि यह गांथा पंचाध्यायी क्षेपक नहीं हो सकती । ग्रंथकारने इसके बाद ' उक्त गाथार्थ प इत्यादि वाक्य देकर उसे भले प्रकार स्पष्ट कर दिया है। ५ पंचाध्यायी की इन दो 'उक्तं च ' गाथाओंका भी पता मालूम होनेकी जरूरत है कि वे कौनसे मूल ग्रंथकी हैं और उस ग्रंथके कर्ता कौनसे आचार्य हैं:--
नौकरोंसे पूजन कराना ।
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णाम जिणा जिणणामा ठवणजिणा जिगिंदपडिमाए । दव्वजिणा जिणजीवा भारजिणा समवसरण त्था ॥ आदहिंद का ज िसक्कह परहिंदं च काव्यं । आदहिद पर हिदादो आदहिदं सु कादव्वं ॥
आशा है कि विद्वज्जन उपर्युक्त सभी 'उक्तं च' पद्योंकी खोज लगानेका कष्ट उठायेंगे और अपनी खोजके नतीजे से मुझे शीघ्र सूचित करनेकी कृपा करेंगे। मैं उनकी इस कृपाका अत्यंत आभारी हूँगा। साथ ही, बदले में उनके सामने अनेक प्रकार की नई नई उपयोगी खोजें रखनेका प्रयत्न करूँगा । देवबन्द । ता. ३०-१०-१७
नौकरोंसे पूजन कराना ।
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[लेखक-श्रीयुत बा० जुगलकिशोरजी मुख्तार । ] जैनियोंमें दिन पर दिन यह बात बढ़ती जाती है कि मंदिरोंमें पूजा के लिए नौकर रक्खे जाते हैं - श्वेतांबर मंदिरोंमें तो आम तौर पर अजैन ब्राह्मण इस कामके लिए नियुक्त किये जाते हैं और उन्हींसे जिनेंद्र भगवान्का पूजन कराया जाता है । पुजारियोंके लिए अब समाचारपत्रों में खुले नोटिस भी आने लगे हैं । सम झमें नहीं आता कि जो लोग मंदिर बनवाने, प्रतिष्ठा कराने, रथयात्रा निकालने और मंदिरोंमें अनेक प्रकारकी सजावट आदिके सामान इकट्ठा करनेमें हजारों और लाखों रुपये खर्च करते हैं वे फिर इतने भक्तिशून्य और अनुरागरहित क्यों हो जाते हैं जो अपने पूज्यकी उपासना अर्थात् अपने करनेका काम क्यों कराते हैं। क्या उनमें वस्तुतः अपने पूज्य के प्रति भक्तिका भाव ही नहीं होता और वे जो कुछ करते हैं वह सब लोक दिखावा, नुमायश, रुटिपालन और बाहरी वाहवाही लूटने तथा प्राप्तिके लिए ही होता है। कुछ भी हो, सच्चे जैनियोंके लिए यह एक बड़े ही कलंक और लज्जाकी बात है ? लोकमें
अतिथियों
आराम
नोकर जरूर नियुक्त किये जाते हैं, जिसका अभिप्राय और उद्देश्य होता है- अतिथियों तथा इष्टजनोंको और सुख पहुँचना, उनकी प्रसन्नत करना और उन्हें अप्रसन्नचित्त न देना । परन्तु यहाँ मामला इससे बिलकुल ही विलक्षण है । जिनेंद्रदेव की पूजा जिनेंद्र भगवान्को कुछ सुख या आराम पहुँचाना अभीष्ट नहीं होता - वे स्वतः अनंत सुख -- स्वरूप हैं - और न इससे भगवानकी प्रसन्नता य
प्राप्त होने
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