Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 11
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 34
________________ ५०० , जैनहितैषी [ भाग १४ . १० एक ही जातिके भीतर ऊँचता मा- अच्छी तरह लागू होती है। अनेक जातियोंका नना । जैनसमाजमें जो बहुतसे अनोखे विचार होना, अनेक गोत्रोंका टालना और एकही फैले हुए हैं, यह विचार भी उनमें से एक है। जा का जातिके भीतर उपर्युक्त ऊँचा-नीचापन मानना ' ये ही सब पंखे हैं जो इस समाजके मरनेकी इसको समझनेके लिए एक उदाहरण लीजिए। सूचना देते हैं। मोहनका एक कुटुंब है जो बहुत बड़ा है और जिसमें अनेक स्त्री पुरुष और बच्चे हैं । उसमें जिन जातियोंमें उपर्युक्त ऊँचता नीचता कितने ही लोग ऐसे हैं जो एक दूसरेसे आठ दस मिटा दें । यह बिलकुल अस्वाभाविक है। माननेका रवाज है, उन्हें चाहिए कि इसको पीढीकी दूरी पर हैं, अर्थात् आठदस पीढ़ियोंके कन्याके देनेसे कोई कुटम्ब नीचा नहीं हो पहले उनका एक पुरुषा था । इतना ही बड़ा एक जाता और लेनेसे कोई ऊँचा नहीं हो जाता । कुटुम्ब रामलालका उसी स्थानमें या अन्य किसी मनुष्य अच्छे बुरे आचरणोंसे ही बड़ा छोटा नगर ग्राममें है । यदि कभी इन दोनों कुटुम्बोंके बनता है। बीच सम्बन्ध हुआ और मोहनके कुटुम्बका ११ जलवायुका प्रभाव । यह बात स्वाकोई लड़का रामलालके कुटुम्बकी किसी लड़की- स्थ्यसम्बंधी प्रकरणमें लिखनेसे रह गई है कि के साथ ब्याहा गया, तो बस उसी समयसे जन संख्या पर जलवायुका भी बहुत कुछ प्रभाव रामलालका कुटुम्ब नीचा हो गया । इसका पड़ता है। कुछ दिन पहले मैं सहारनपुर जिफल यह होगा कि मोहनके कुटुम्बके पुरुष राम. लेके कस्बे · नानोता' में गया, तो मुझे वहाँ इस बातका खूब अनुभव हुआ। इस जिलेकी लालके कुटुम्बकी कन्याओंके साथ तो विवाह अधिकांश पृथिवीमें नमी बहुत है । जमीन कर लेंगे; परन्तु रामलालके कुटुम्बके पुरुष मोह खोदने पर पानी बहुत ही पास निकल आता है। नके कुटुम्बकी कन्याओंके साथ विवाह नहीं इसके कारण वायुमें भाप मिली रहती है, खुश्की कर सकेंगे । अर्थात् रामलालके कुटुम्बकी लड़कियाँ मोहनके कुटुम्बमें तो जा सकती हैं; नहीं होती, पानी बादी करता है और भारी परन्तु मोहनके कुटुम्बकी कोई लड़की राम होता है । इससे यहाँके लोगोंका स्वास्थ्य खराब रहता है और मौतें अधिक होती हैं। सहारनपुर लालके कुटुम्बमें नहीं जा सकती। यह रवाज उस हानिकारक और कठोर विचारसे उत्पन्न जिलेकी जनसंख्याके. घटनेका यह भी एक हुआ है जिसमें स्त्रीजाति पुरुषजातिकी अपेक्षा कारण है । व्यायामके अधिक प्रचारसे और तुच्छ और नीच गिनी जाती है । जब कन्या आरोग्यताके नियमों पर चलनेसे इस प्रभावसे वरसे नीची समझी गई, तब कन्याका कुटुम्ब बचा जा सकता है। वर के कुटम्बसे नीचा हो गया और यह ऊँच १२ जैनोंका आर्यसमाजी हो जाना नीच माननेका रवाज पड़ गया । इस रवाजसे या अन्य हिन्दुओंमें मिल जाना । जैनविवाहका संकुचित क्षेत्र और भी अधिक संकु- समाजमें बड़ी अज्ञानता फैली हुई है। विद्वाचित हो गया है । कहावत है कि जब चींटीके नोंकी इस समाजमें बहुत ही अधिक कमी है । मरनेके दिन आते हैं तो उसके पर निकल ऐसे सैकड़ों स्थान हैं जहाँके जैनी यह नहीं आते हैं । यह कहावत जैनसमाजके ऊपर जानते कि हम पन्दिरजीमें जाकर किसके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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