Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 04 05 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 7
________________ काममें उन्होंने बड़े बड़े कष्ट,उठाये; परन्तु अन्तमें उनका प्रयत्न सफल हुए बिना न रहा। धन एकट्ठा करनेके विषयमें वाशिंगटनके नीचे लिखे अनुभवसिद्ध नियम बड़े कामके हैं: १. तुम अपने कार्यके विषयमें अनेक व्यक्तियों और संस्थाओंको अपना सारा हाल सुनाओ। यह हाल सुनानेमें तुम अपना गौरव समझो। तुम्हें जो कुछ कहना हो संक्षेपमें और साफ साफ कहो। २. परिणाम या फलके विषयमें निश्चिन्त रहो। ३. इस बातपर विश्वास रक्खो कि संस्थाका अन्तरंग जितना ही स्वच्छ, पवित्र और उपयोगी होगा उतना ही अधिक उसको लोकाश्रय भी मिलेगा। .. ४. धनी और गरीब दोनोंसे सहायता माँगो । सच्ची सहानुभूति प्रकट करनेवाले सैकड़ों दाताओंके छोटे छोटे दानोंपर ही परोपकारके बड़े बड़े काम होते हैं। ____५. चन्दा एकट्ठा करते समय दाताओंकी सहानुभूति, सहायता और उपदेश प्राप्त करनेका यत्न करो। ___ आत्मावलम्बन और परिश्रमसे धीरे धीरे टस्केजी संस्थाकी उन्नति होने लगी। सन् १८८१ में इस संस्थाकी थोडीसी जमीन, तीन इमारतें, एक शिक्षक और तीस विद्यार्थी थे । अब वहाँ १०६ इमारतें २,३५० एकड़ जमीन, और १५०० जानवर हैं । कृषिके उपयोगी घंत्रों और अन्य सामानकी कीमत ३८,८५, ६३९ रुपया है । वार्षिक आमदनी ९,००,००० रुपया है और कोषमें ६,४५००० रुपया जमा हैं। यह रकम घर घर भिक्षा माँगकर एकट्ठा की जाती है । इस समय संस्थाकी कुल जायदाद एक करोडसे अधिककी है जिसका प्रबन्ध पंचोंद्वारा किया जाता है । शिक्षकोंकी संख्या १८० और वि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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