Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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लामो सबूती सारौजी। जि. ॥ ७॥ पाठों मुद्दाडूलह हाजिर आये, मोह मुख्तार बुलाये । चार कषाय अरु आठ मदोंको, साथ गवाहीमें लाये जौ। जिन शासन नायक झूठा दावा है चेतन जीवका ॥८॥ हमने नहौं बहकाया इसको, यह मेरे घर आया। कर्जा लेकर हमसे खाया, ऐसा फरेब मचायाजी । जि० ॥ ६ ॥ विषय भोगमें रमिया चैतन, घाटा नफा नहीं जाना। कर्जदार जब लारै लाग्या, तब लाग्या पछतानो जी। जि० ॥ १० ॥ हाजिर खड़े गवाह हमारे, पूछिये हाल जु सारा। विना लियां कर्जा चेतनसे, कैसे करे किनाराजी। जि० ॥ ११ ॥ चेतन कह सताबी मांहों, सुन शासन सरदार । ईमानदार हैं गवाह हमारे, जाणे सब संसारजौ। जि. ॥ १२ ॥ मैं चेतन अनाथ प्रभुजी, कर्म फरेबी भारी। जीव अनन्ते राह चलतको, लूट चौरासीमें डाराजौ । जि. ॥ १३ ॥ बड़े बड़े पण्डित इन लटे, ऐसा दम बतलाया। धर्म कहा अरु पाप कराया, ऐसा कर्ज चढ़ाया जौ। जि० ॥ १४ ॥ हिंसा मांहों धर्म बताया, तपस्या सेतो डिगाया। इन्द्रिय सुखमें मग्न करीने, झूठा जाल फैलाया जौ। जि० ॥ १५ ॥ ऐसा करो इन्साफ प्रभुजी, अपौल होने न पावे। हक्करसी चेतन