Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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( १९५ ) आपण रे अंधारे भोलप मोटौ । था० ॥ ४॥ पत्थर धात चित्रामादिक ना करे करवा दे भगवान। आकार तो लाद गोबर धूर कायलादिक ना, आकार कर बन्दना बारस्वार था०॥५॥ जो गोबरादिका आकार ने बांद, तो आपरी श्रद्धा से आप अजाण । पत्थर धात चित्रादिक ना आकार देखौ खूढ़ भ्रम भूलाण ॥ था. ॥ ६ ॥ कई थापना सचित ने अचित द्रव्य नें, भगवंत रे आकार बणावे घेरो। तिण आगे आप पांचूं अंग नमे नै, नमोत्थुणो कहै खूढ़ होय होय नेडो ॥ था. ॥ ७॥ तिण री सेवा पूजा करे भाव भगत स्यं, एहज मांहरी आवागमन निवार। ते तो एकेन्द्री जीव अज्ञानी, ते तर नही ते किण विध तारे ॥ था० ॥८॥ आचारज उवज्झाय साधु गुगवंता, त्यांचे प्राकारे दोसै दढिया भेषधार । जे गुगा बिन आकार ने बांदे तो, ' क्यू न वांदे यारो देख आकार ॥ था० ॥ ६ ॥ जे जे
आकार मिनख तणा के, हिज आकार साधारो जाणो । जे गुण बिना आकार में बांदे तो, सर्व जीवा रे क्यों न बांदै आयाणो ॥ था० ॥ १० ॥ तोऊ सर्व मिनखां ने नहौं बांदे तो, तिण थापना आकार दिया उठाय। ए अकल बिया श्रद्धा परूमै, ते पग पग झूठ बोले फिर जाय ॥ था० ॥ ११॥ जे आकार बांदण