Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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( २१६ । हंत देव रे काम जी ॥ जी० ॥११॥ आवै दया पालण रे पगथीयो, तिथ पूर्व पजसण मास जौ। ते तो तिण दिन जीव मारे घणां, करे जनेक जीवां रो बिनास जौ ॥ जो० ॥ १२ ॥ पछै सतरह भदै पूजा रचे, तिण गे माडे घणो बिस्तारजी। तह दया तणो सौचो नहौं, करे छ काय रो संहारजो ॥ जो० ॥ १३ ॥ बांध मगां मे घूधग, हाथ मे लेवे मजीरा तालजी । ते तो बजावै गावै कुदड़का करै, छः काय रो खिंगारजी ॥ जी. ॥ १४ ॥ देव काज हणे जौव दूण बिध, तिण में मूल मजाणो दोषजी। जाणे लाभ हुया जिन धर्म रो, तिण स्यूं नेडी के अविचल मोक्षजी ॥ जी ० ॥ १५॥ इत्यादिक देवल काजे हणे तिण री कहता न आवे पारजी। हिवै गुरु रे काजे हो जीव में, ते सांमल ज्यो बिस्तारजी ॥ जो० ॥ १६ ॥ देव रे काजे देवल करावतां थकां, बस थावर रा ल व्या प्राणजी। तिन गुरु काजे थानक किया, हुवै छ काय रो घमसानजी ॥ जी० ॥ १७॥ थानक करावता हिंसा हुई, ते तो देवल नौ परे जाणजी। छः काय मारी है किण बिधे, तिण रौ बधवन्त करज्यो पिछाणजी ॥ जी० ॥ १८॥ बले बांधे परदाने परचनें, चन्दवा भारादिक प्राणजी। इत्यादिक थानक रे कारण हो, बस थावगं रा प्राण